अहमद शहरयार
ग़ज़ल 15
अशआर 15
फ़क़ीर-ए-शहर भी रहा हूँ 'शहरयार' भी मगर
जो इत्मिनान फ़क़्र में है ताज-ओ-तख़्त में नहीं
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न दस्तकें न सदा कौन दर पे आया है
फ़क़ीर-ए-शहर है या शहरयार देखिएगा
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ख़्वाब-ए-ज़ियाँ हैं उम्र का ख़्वाब हैं हासिल-ए-हयात
इस का भी था यक़ीं मुझे वो भी मिरे गुमाँ में था
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