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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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अहमद अशफ़ाक़

1969 | क़तर

अहमद अशफ़ाक़

ग़ज़ल 10

अशआर 11

चीख़ उठता है दफ़अतन किरदार

जब कोई शख़्स बद-गुमाँ हो जाए

फ़ासले ये सिमट नहीं सकते

अब परायों में कर शुमार मुझे

बिकता रहता सर-ए-बाज़ार कई क़िस्तों में

शुक्र है मेरे ख़ुदा ने मुझे शोहरत नहीं दी

बहुत बईद था मसअलों का हल होना

अना के पाँव से ज़ंजीर हम हटा सके

अजब ठहराव पैदा हो रहा है रोज़ शब में

मिरी वहशत कोई ताज़ा अज़िय्यत चाहती है

पुस्तकें 2

 

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