अफ़ज़ाल अहमद सय्यद
ग़ज़ल 12
अशआर 10
कमान-ए-शाख़ से गुल किस हदफ़ को जाते हैं
नशेब-ए-ख़ाक में जा कर मुझे ख़याल आया
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मैं दिल को उस की तग़ाफ़ुल-सरा से ले आया
और अपने ख़ाना-ए-वहशत में ज़ेर-ए-दाम रखा
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इस दिल को किसी दस्त-ए-अदा-संज में रखना
मुमकिन है ये मीज़ान-ए-कम-ओ-बेश जला दे
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यही बहुत थे मुझे नान ओ आब ओ शम्अ ओ गुल
सफ़र-नज़ाद था अस्बाब मुख़्तसर रक्खा
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उसे अजब था ग़ुरूर-ए-शगुफ़्त-ए-रुख़्सारी
बहार-ए-गुल को बहुत बे-हुनर कहा उस ने
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