अबरार अहमद काशिफ़
ग़ज़ल 4
नज़्म 1
अशआर 3
वस्ल के बाद भी पूरी नहीं होती ख़्वाहिश
और कुछ है जो ये नादीदा बदन चाहता है
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आख़िरी लम्हात में क्या सोचने लगते हो तुम
जीत के नज़दीक आ कर हार जाया मत करो
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परेशानी अगर है तो परेशानी का हल भी है
परेशाँ-हाल रहने से परेशानी नहीं जाती
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