अब्दुर रऊफ़ उरूज
ग़ज़ल 15
अशआर 5
ख़मोशी मेरी लय में गुनगुनाना चाहती है
किसी से बात करने का बहाना चाहती है
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ये तबस्सुम का उजाला ये निगाहों की सहर
लोग यूँ भी तो छुपाते हैं अंधेरे दिल में
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ज़िंदगी अज़्मत-ए-हाज़िर के बग़ैर
इक तसलसुल है मगर ख़्वाबों का
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नफ़स के लोच को ख़ंजर बनाना चाहती है
मोहब्बत अपनी तेज़ी आज़माना चाहती है
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ज़ुल्मतें वहशत-ए-फ़र्दा से निढाल
ढूँढती फिरती हैं घर ख़्वाबों का
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