उर्दू
उर्दू है मिरा नाम मैं 'ख़ुसरव' की पहेली
मैं 'मीर' की हमराज़ हूँ 'ग़ालिब' की सहेली
दक्कन के 'वली' ने मुझे गोदी में खेलाया
'सौदा' के क़सीदों ने मिरा हुस्न बढ़ाया
है 'मीर' की अज़्मत कि मुझे चलना सिखाया
मैं दाग़ के आँगन में खिली बन के चमेली
उर्दू है मिरा नाम मैं 'ख़ुसरव' की पहेली
'ग़ालिब' ने बुलंदी का सफ़र मुझ को सिखाया
'हाली' ने मुरव्वत का सबक़ याद दिलाया
'इक़बाल' ने आईना-ए-हक़ मुझ को दिखाया
'मोमिन' ने सजाई मिरे ख़्वाबों की हवेली
उर्दू है मिरा नाम मैं 'ख़ुसरव' की पहेली
है 'ज़ौक़' की अज़्मत कि दिए मुझ को सहारे
'चकबस्त' की उल्फ़त ने मिरे ख़्वाब सँवारे
'फ़ानी' ने सजाए मिरी पलकों पे सितारे
'अकबर' ने रचाई मिरी बे-रंग हथेली
उर्दू है मिरा नाम मैं 'ख़ुसरव' की पहेली
क्यूँ मुझ को बनाते हो तअस्सुब का निशाना
मैं ने तो कभी ख़ुद को मुसलमाँ नहीं माना
देखा था कभी मैं ने भी ख़ुशियों का ज़माना
अपने ही वतन में हूँ मगर आज अकेली
उर्दू है मिरा नाम मैं 'ख़ुसरव' की पहेली
- पुस्तक : Rat Jage (पृष्ठ 106)
- रचनाकार : Iqbal Ashhar
- प्रकाशन : Kitabi Duniya, Delhi (2010)
- संस्करण : 2010
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