मेरे प्यारे वतन
मेरे वतन, प्यारे वतन
राहत के गहवारे वतन
हर दिल के उजयारे वतन
हर आँख के तारे वतन
गुल-पोश तेरी वादियाँ
फ़रहत-निशाँ राहत-रसाँ
तेरे चमन-ज़ारों पे है
गुलज़ार-ए-जन्नत का गुमाँ
हर शाख़ फूलों की छड़ी
हर नख़्ल-ए-तूबा है यहाँ
कौसर के चश्मे जा-ब-जा
तसनीम हर आब-ए-रवाँ
हर बर्ग रूह-ए-ताज़गी
हर फूल जान-ए-गुल्सिताँ
हर बाग़ बाग़-ए-दिल-कशी
हर बाग़ बाग़-ए-बे-ख़िज़ाँ
दिलकश चरागाहें तिरी
ढोरों के जिन में कारवाँ
अंजुम-सिफ़त गुलहा-ए-नौ
हर तख़्ता-ए-गुल आसमाँ
नक़्श-ए-सुरय्या जा-ब-जा
हर हर रविश इक कहकशाँ
तेरी बहारें दाइमी
तेरी बहारें जावेदाँ
तुझ में है रूह-ए-ज़िंदगी
पैहम रवाँ पैहम दवाँ
दरिया वो तेरे तुंद-ख़ू
झीलें वो तेरी बे-कराँ
शाम-ए-अवध के लब पे है
हुस्न-ए-अज़ल की दास्ताँ
कहती है राज़-ए-सरमदी
सुब्ह-ए-बनारस की ज़बाँ
उड़ता है हफ़्त-अफ़्लाक पर
उन कार-ख़ानों का धुआँ
जिन में हैं लाखों मेहनती
सनअत-गरी के पासबाँ
तेरी बनारस की ज़री
रश्क-ए-हरीर-ओ-परनियाँ
बीदर की फ़नकारी में हैं
सनअत की सब बारीकियाँ
अज़्मत तिरे इक़बाल की
तेरे पहाड़ों से अयाँ
दरियाओं का पानी, तरी
तक़्दीस का अंदाज़ा-दाँ
क्या 'भारतेंदु' ने किया
गंगा की लहरों का बयाँ
'इक़बाल' और चकबस्त हैं
अज़्मत के तेरी नग़्मा-ख़्वाँ
'जोश' ओ 'फ़िराक़' ओ 'पंत' हैं
तेरे अदब के तर्जुमाँ
'तुलसी' ओ 'ख़ुसरव' हैं तेरी
तारीफ़ में रत्ब-उल-लिसाँ
गाते हैं नग़्मा मिल के सब
ऊँचा रहे तेरा निशाँ
मेरे वतन, प्यारे वतन
राहत के गहवारे वतन
हर दिल के उजियारे वतन
हर आँख के तारे वतन
तेरे नज़ारों के नगीं
दुनिया की ख़ातम में नहीं
सारे जहाँ में मुंतख़ब
कश्मीर की अर्ज़-ए-हसीं
फ़ितरत का रंगीं मोजज़ा
फ़िरदौस बर-रू-ए-ज़मीं
फ़िरदौस बर-रू-ए-ज़मीं
हाँ हाँ हमीं अस्त ओ हमीं
सरसब्ज़ जिस के दश्त हैं
जिस के जबल हैं सुर्मगीं
मेवे ब-कसरत हैं जहाँ
शीरीं मिसाल-ए-अंग्बीं
हर ज़ाफ़राँ के फूल में
अक्स-ए-जमाल-ए-हूरईं
वो मालवे की चाँदनी
गुम जिस में हों दुनिया-ओ-दीं
इस ख़ित्ता-ए-नैरंग में
हर इक फ़ज़ा हुस्न-आफ़रीं
हर शय में हुस्न-ए-ज़िंदगी
दिलकश मकाँ दिलकश ज़मीं
हर मर्द मर्द-ए-ख़ूब-रू
हर एक औरत नाज़नीं
वो ताज की ख़ुश-पैकरी
हर ज़ाविए से दिल-नशीं
सनअत-गरों के दौर की
इक यादगार-ए-मरमरीं
होती है जो हर शाम को
फ़ैज़-ए-शफ़क़ से अहमरीं
दरिया की मौजों से अलग
या इक बत-ए-नज़्ज़ारा-बीं
या ताएर-ए-नूरी कोई
पर्वाज़ करने के क़रीं
या अहल-ए-दुनिया से अलग
इक आबिद-ए-उज़्लत-गुज़ी
नक़्श-ए-अजंता की क़सम
जचता नहीं अर्ज़ंग-ए-चीं
शान-ए-एलोरा देख कर
झुकती है आज़र की जबीं
चित्तौड़ हो या आगरा
ऐसे नहीं क़िलए कहीं
बुत-गर हो या नक़्क़ाश हो
तू सब की अज़्मत का अमीं
मेरे वतन, प्यारे वतन
राहत के गहवारे वतन
हर दिल के अजियारे वतन
हर आँख के तारे वतन
दिलकश तिरे दश्त ओ चमन
रंगीं तिरे शहर ओ चमन
तेरे जवाँ राना जवाँ
तेरे हसीं गुल पैरहन
इक अंजुमन दुनिया है ये
तू इस में सद्र-ए-अंजुमन
तेरे मुग़न्नी ख़ुश-नवा
शाएर तिरे शीरीं-सुख़न
हर ज़र्रा इक माह-ए-मुबीं
हर ख़ार रश्क-ए-नस्तरीं
ग़ुंचा तिरे सहरा का है
इक नाफ़ा-ए-मुश्क-ए-ख़ुतन
कंकर हैं तेरे बे-बहा
पत्थर तिरे लाल-ए-यमन
बस्ती से जंगल ख़ूब-तर
बाग़ों से हुस्न अफ़रोज़ बन
वो मोर वो कब्क-ए-दरी
वो चौकड़ी भरते हिरन
रंगीं-अदा वो तितलियाँ
बाँबी में वो नागों के फन
वो शेर जिन के नाम से
लरज़े में आए अहरमन
खेतों की बरकत से अयाँ
फ़ैज़ान-ए-रब्ब-ए-ज़ुल-मिनन
चश्मों के शीरीं आब से
लज़्ज़त-कशाँ काम-ओ-दहन
ताबिंदा तेरा अहद-ए-नौ
रौशन तिरा अहद-ए-कुहन
कितनों ने तुझ पर कर दिया
क़ुर्बान अपना माल धन
कितने शहीदों को मिले
तेरे लिए दार-ओ-रसन
कितनों को तेरा इश्क़ था
कितनों को थी तेरी लगन
तेरे जफ़ा-कश मेहनती
रखते हैं अज़्म-ए-कोहकन
तेरे सिपाही सूरमा
बे-मिस्ल यक्ता-ए-ज़मन
'भीषम' सा जिन में हौसला
'अर्जुन' सा जिन में बाँकपन
आलिम जो फ़ख़्र-ए-इल्म हैं
फ़नकार नाज़ाँ जिन पे फ़न
'राय' ओ 'बोस' ओ 'शेरगिल'
'दिनकर', 'जिगर' 'मैथली-शरण'
'वलाठोल', 'माहिर', भारती
'बच्चन', 'महादेवी', 'सुमन'
'कृष्णन', 'निराला', 'प्रेम-चंद'
'टैगोर' ओ 'आज़ाद' ओ 'रमन'
मेरे वतन, प्यारे वतन
राहत के गहवारे वतन
हर दिल के अजियारे वतन
हर आँख के तारे वतन
खेती तिरी हर इक हरी
दिलकश तिरी ख़ुश-मंज़री
तेरी बिसात-ए-ख़ाक के
ज़र्रे हैं महर-ओ-मुश्तरी
झेलम कावेरी नाग वो
गंगा की वो गंगोत्री
वो नर्बदा की तमकनत
वो शौकत-ए-गोदावरी
पाकीज़गी सरजू की वो
जमुना की वो ख़ुश-गाैहरी
दुल्लर्बा आब-ए-नील-गूँ
कश्मीर की नीलम-परी
दिलकश पपीहे की सदा
कोयल की तानें मद-भरी
तीतर का वो हक़ सिर्रहु
तूती का वो विर्द-ए-हरी
सूफ़ी तिरे हर दौर में
करते रहे पैग़म्बरी
'चिश्ती' ओ 'नानक' से मिली
फ़क़्र-ओ-ग़िना को बरतरी
अदल-ए-जहाँगीरी में थी
मुज़्मर रेआया-पर्वरी
वो नव-रतन जिन से हुई
तहज़ीब-ए-दौर-ए-अकबरी
रखते थे अफ़्ग़ान-ओ-मुग़ल
इक सौलत-ए-अस्कंदरी
रानाओं के इक़बाल की
होती है किस से हम-सरी
सावंत वो योद्धा तिरे
तेरे जियाले वो जरी
नीती विदुर की आज तक
करती है तेरी रहबरी
अब तक है मशहूर-ए-ज़माँ
'चाणक्य' की दानिश-वरी
वयास और विश्वामित्र से
मुनियों की शान-ए-क़ैसरी
पातंजलि ओ साँख से
ऋषियों की हिकमत-पर्वरी
बख़्शे तुझे इनआम-ए-नौ
हर दौर चर्ख़-ए-चम्बरी
ख़ुश-गाैहरी दे आब को
और ख़ाक को ख़ुश-जौहरी
ज़र्रों को महर-अफ़्शानियाँ
क़तरों को दरिया-गुस्तरी
मेरे वतन, प्यारे वतन
राहत के गहवारे वतन
हर दिल के अजियारे वतन
हर आँख के तारे वतन
तू रहबर-ए-नौ-ए-बशर
तू अम्न का पैग़ाम-बर
पाले हैं तू ने गोद में
साहिब-ख़िरद साहिब-ए-नज़र
अफ़ज़ल-तरीं इन सब में है
बापू का नाम-ए-मो'तबर
हर लफ़्ज़ जिस का दिल-नशीं
हर बात जिस की पुर-असर
जिस ने लगाया दहर में
नारा ये बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर
बे-कार हैं तीर-ओ-सिनाँ
बे-सूद हैं तेग़-ओ-तबर
हिंसा का रस्ता झूट है
हक़ है अहिंसा की डगर
दरमाँ है ये हर दर्द का
ये हर मरज़ का चारा-गर
जंगाह-ए-आलम में कोई
इस से नहीं बेहतर सिपर
करता हूँ मैं तेरे लिए
अब ये दुआ-ए-मुख़्तसर
रौनक़ पे हों तेरे चमन
सरसब्ज़ हों तेरे शजर
नख़्ल-ए-उमीद-ए-बेहतरी
हर फ़स्ल में हो बारवर
कोशिश हो दुनिया में कोई
ख़ित्ता न हो ज़ेर-ओ-ज़बर
तेरा हर इक बासी रहे
नेको-सिफ़त नेको-सियर
हर ज़न सलीक़ा-मंद हो
हर मर्द हो साहिब-हुनर
जब तक हैं ये अर्ज़ ओ फ़लक
जब तक हैं ये शम्स ओ क़मर
मेरे वतन, प्यारे वतन
राहत के गहवारे वतन
हर दिल के उजयारे वतन
हर आँख के तारे वतन
- पुस्तक : Kulliyat-e-Arsh (पृष्ठ 297)
- रचनाकार : Arsh Malsiyani
- प्रकाशन : Ali Hujwiri Publisher H. 811, A Androon, Akbari Gate, Lahore
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