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तू सुख़नवर है तो कर हक़ से वफ़ा हर्फ़-ब-हर्फ़

सदा अम्बालवी

तू सुख़नवर है तो कर हक़ से वफ़ा हर्फ़-ब-हर्फ़

सदा अम्बालवी

MORE BYसदा अम्बालवी

    तू सुख़नवर है तो कर हक़ से वफ़ा हर्फ़-ब-हर्फ़

    फ़र्ज़ शा'इर का सदाक़त से निभा हर्फ़-ब-हर्फ़

    ढूँड अफ़्लाक नए और ज़मीनें भी नई

    हो ग़ज़ल का तिरी हर शे'र नया हर्फ़-ब-हर्फ़

    नक़्श को लफ़्ज़ में मंज़र को इबारत में बदल

    फिर जो देखा तिरी आँखों ने दिखा हर्फ़-ब-हर्फ़

    लैला मजनूँ के फ़साने के बहाने ही सही

    अपनी रूदाद ज़माने को सुना हर्फ़-ब-हर्फ़

    रंग-ओ-अल्फ़ाज़ में जुरअत कहाँ जो खींचें सनम

    हू-ब-हू तेरी छटा तेरी अदा हर्फ़-ब-हर्फ़

    शे'र में यूँ ही नहीं रंग-ए-तग़ज़्ज़ुल आया

    ख़ून-ए-दिल से इसे सींचा है गया हर्फ़-ब-हर्फ़

    हम नहीं वो जो तरन्नुम को सुख़न कहते हैं

    हम ने हर शे'र में मा'नी है भरा हर्फ़-ब-हर्फ़

    शैख़ अच्छा हुआ तू हाफ़िज़-ए-क़ुरआन हुआ

    अब इक आयत पे अमल कर के दिखा हर्फ़-ब-हर्फ़

    कर बुलंद अपनी सदा हक़ में ग़रीबों के 'सदा'

    और उतर अपने तख़ल्लुस पे खरा हर्फ़-ब-हर्फ़

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