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मैं तिश्ना था मुझे सर-चश्मा-ए-सराब दिया

ज़ेब ग़ौरी

मैं तिश्ना था मुझे सर-चश्मा-ए-सराब दिया

ज़ेब ग़ौरी

MORE BYज़ेब ग़ौरी

    मैं तिश्ना था मुझे सर-चश्मा-ए-सराब दिया

    थके बदन को मिरे पत्थरों में दाब दिया

    जो दस्तरस में था मेरी वो मिला मुझ को

    बिसात-ए-ख़ाक से बाहर जहान-ए-ख़्वाब दिया

    अजब करिश्मा दिखाया ब-यक क़लम उस ने

    हवा चलाई समुंदर को नक़्श-ए-आब दिया

    में राख हो गया दीवार-ए-संग तकते हुए

    सुना सवाल उस ने कोई जवाब दिया

    तही-ख़ज़ाना नफ़स था बचा के क्या रखता

    उस ने पूछा मैं ने कभी हिसाब दिया

    फिर एक नक़्श का नैरंग 'ज़ेब' बिखरेगा

    मिरे ग़ुबार को फिर उस ने पेच-ओ-ताब दिया

    RECITATIONS

    नोमान शौक़

    नोमान शौक़,

    नोमान शौक़

    नोमान शौक़,

    नोमान शौक़

    नोमान शौक़,

    नोमान शौक़

    मैं तिश्ना था मुझे सर-चश्मा-ए-सराब दिया नोमान शौक़

    नोमान शौक़

    मैं तिश्ना था मुझे सर-चश्मा-ए-सराब दिया नोमान शौक़

    नोमान शौक़

    मैं तिश्ना था मुझे सर-चश्मा-ए-सराब दिया नोमान शौक़

    स्रोत :
    • पुस्तक : Zard Zarkhez (पृष्ठ 18)
    • रचनाकार : Zeb Ghauri
    • प्रकाशन : Shab Khoon Kitab ghar, Alahabad (1976)
    • संस्करण : 1976

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