क्या जानिए मंज़िल है कहाँ जाते हैं किस सम्त
क्या जानिए मंज़िल है कहाँ जाते हैं किस सम्त
भटकी हुई इस भीड़ में सब सोच रहे हैं
भीगी हुई इक शाम की दहलीज़ पे बैठे
हम दिल के सुलगने का सबब सोच रहे हैं
टूटे हुए पत्तों से दरख़्तों का त'अल्लुक़
हम दूर खड़े कुंज-ए-तरब सोच रहे हैं
बुझती हुई शम्ओं' का धुआँ है सर-ए-महफ़िल
क्या रंग जमे आख़िर-ए-शब सोच रहे हैं
इस लहर के पीछे भी रवाँ हैं नई लहरें
पहले नहीं सोचा था जो अब सोच रहे हैं
हम उभरे भी डूबे भी सियाही के भँवर में
हम सोए नहीं शब-हमा-शब सोच रहे हैं
- पुस्तक : auraq salnama magazines (पृष्ठ 498)
- रचनाकार : Wazir Agha,Arif Abdul Mateen
- प्रकाशन : Daftar Mahnama Auraq Lahore (1967 )
- संस्करण : 1967
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