घर से हम घर तलक गए होंगे
अपने ही आप तक गए होंगे
हम जो अब आदमी हैं पहले कभी
जाम होंगे छलक गए होंगे
वो भी अब हम से थक गया होगा
हम भी अब उस से थक गए होंगे
शब जो हम से हुआ मुआ'फ़ करो
नहीं पी थी बहक गए होंगे
कितने ही लोग हिर्स-ए-शोहरत में
दार पर ख़ुद लटक गए होंगे
शुक्र है इस निगाह-ए-कम का मियाँ
पहले ही हम खटक गए होंगे
हम तो अपनी तलाश में अक्सर
अज़ समा-ता-समक गए होंगे
उस का लश्कर जहाँ-तहाँ या'नी
हम भी बस बे-कुमक गए होंगे
'जौन' अल्लाह और ये आलम
बीच में हम अटक गए होंगे
- पुस्तक : gumaan (पृष्ठ 179)
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