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जिस को हम समझते थे उम्र भर का रिश्ता है

अब्बास रिज़वी

जिस को हम समझते थे उम्र भर का रिश्ता है

अब्बास रिज़वी

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    जिस को हम समझते थे उम्र भर का रिश्ता है

    अब वो राब्ता जैसे रहगुज़र का रिश्ता है

    सुब्ह तक ये मौजें भी थक के सो ही जाएँगी

    चाँद का समुंदर है रात भर का रिश्ता है

    ये जो इतने सारे दिल साथ ही धड़कते हैं

    कुछ क़लम का नाता है कुछ हुनर का रिश्ता है

    तेज़ हैं तो क्या ग़म है तुंद हैं तो शिकवा क्या

    इन हवाओं से अपना बाल-ओ-पर का रिश्ता है

    इस हसीं तसव्वुर का मेरी सुर्ख़ आँखों से

    आब गिल का नाता है बाम-ओ-दर का रिश्ता है

    एक ना-तवाँ रिश्ता उस से अब भी बाक़ी है

    जिस तरह दुआओं का और असर का रिश्ता है

    स्रोत :
    • पुस्तक : Quarterly TASTEER Lahore (पृष्ठ 186)
    • रचनाकार : Naseer Ahmed Nasir
    • प्रकाशन : Room No.-1,1st Floor, Awan Plaza, Shadman Market, Lahore (Issue No. 7,8 Oct 1998 To Mar.1999)
    • संस्करण : Issue No. 7,8 Oct 1998 To Mar.1999

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