जिस को देखो ख़्वाब में उलझा बैठा है
जिस को देखो ख़्वाब में उलझा बैठा है
अपने ही पायाब में उलझा बैठा है
आँसू आँसू जिस ने दरिया पार किए
क़तरा क़तरा आब में उलझा बैठा है
भूल के जौहरी अपने लाल-ओ-जवाहर को
शौक़-ए-दुर-ए-नायाब में उलझा बैठा है
वो जो बगूला बन कर उड़ता फिरता था
धागा धागा सराब में उलझा बैठा है
निस्फ़ नहार पे यूँ लगता है सूरज भी
वक़्त की आब-ओ-ताब में उलझा बैठा है
याद-ए-किताब-ए-शौक़ न होगी ख़त्म कभी
इंसाँ इक इक बाब में उलझा बैठा है
- पुस्तक : TASTEER (पृष्ठ 166)
- रचनाकार : Nasiir Ahmed Nasir
- प्रकाशन : Room No.1, 1st Floor, Awaan Plaza, Shadmaan Market, Lahore (Issue No. 3 October/December. 1997)
- संस्करण : Issue No. 3 October/December. 1997
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