एकता पर नज़्में
इत्तिहाद और यकजहती इन्सानों
की सबसे बड़ी ताक़त है इस का मुशाहदा हम ज़िंदगी के हर मरहले में करते हैं। इन्सानों के ज़िंदगी गुज़ारने का समाजी निज़ाम इसी वहदत और यकजहती को हासिल करने का एक ज़रिया है। इसी से तहज़ीबें वुजूद पज़ीर होती हैं और नए समाजी निज़ाम नुमू पाते हैं। वहदत को निगल लेने वाली मनफ़ी सूरतें भी हमारे आस-पास बिखरी पड़ी होती हैं उनसे मुक़ाबला करना भी इन्सानी समाज की एक अहम ज़िम्मेदारी है लेकिन इस के बावजूद भी कभी ये इत्तिहाद ख़त्म होता और कभी बनता है, जब बनता है तो क्या ख़ुश-गवार सूरत पैदा होती है और जब टूटता है तो उस के मनफ़ी असरात क्या होते हैं। इन तमाम जहतों को ये शेरी इंतिख़ाब मौज़ू बनाता है।