ज़ेवर का डिब्बा
ठाकुर साहब के बेटे वीरेंद्र को तीस रूपये महीना ट्यूशन के साथ चंद्र प्रकाश को रहने के लिए मुफ़्त का मकान भी मिल गया था। ठाकुर साहब उस पर काफ़ी भरोसा करते थे। घर में बेटे की शादी की बात चली तो सारी ज़िम्मेदारी चंद्र प्रकाश को ही दी गई। एक रोज़ हवेली से गहनों का डिब्बा चोरी हो गया। इसके बाद चंद्र प्रकाश ने वह मकान छोड़ दिया। मगर समस्या तो तब शुरू हुई जब उसकी बीवी को पता चला कि ज़ेवर का डिब्बा किसी और ने नहीं चंद्र प्रकाश ने ही चुराया है।