बेगू
कश्मीर की सैर के लिए गए एक ऐसे नौजवान की कहानी जिसे वहाँ एक स्थानीय लड़की बेगू से मोहब्बत हो जाती है। वह बेगू पर पूरी तरह मर-मिटता है कि तभी उस नौजवान का दोस्त बेगू के चरित्र के बारे में कई तरह की बातें उसे बताता है। वैसी ही बातें वह दूसरे और लोगों से भी सुनता है। ये सब बातें सुनने के बाद उसे बेगू से नफ़रत हो जाती है, मगर बेगू उसकी जुदाई में अपनी जान दे देती है। बेगू की मौत के बाद वह नौजवान भी इश्क़ की लगी आग में जल कर मर जाता है।
सआदत हसन मंटो
जानकी
जानकी एक ज़िंदा और जीवंत पात्र है जो पूना से बम्बई फ़िल्म में काम करने आती है। उसके अंदर ममता और ख़ुलूस का ठाठें मारता समुंदर है। अज़ीज़, सईद और नरायन, जिस व्यक्ति के भी नज़दीक होती है उसके साथ जिस्मानी ख़ुलूस बरतने में कोई तकल्लुफ़ महसूस नहीं करती। उसकी नफ़्सियाती पेचीदगियाँ कुछ इस तरह की हैं कि जिस वक़्त वह एक शख़्स से जिस्मानी रिश्तों में जुड़ती है, ठीक उसी वक़्त उसे दूसरे की बीमारी का भी ख़याल सताता रहता है। जिन्सी मैलानात का तज्ज़िया करती हुई यह एक उम्दा कहानी है।
सआदत हसन मंटो
चौदहवीं का चाँद
प्राकृतिक दृश्यों का प्रेमी विल्सन की कहानी है जो एक बैंक में मैनेजर था। विल्सन एक बार जज़ीरे पर आया तो चौदहवीं के चाँद ने उसे इतना मंत्रमुग्ध और हैरान किया कि उसने सारी ज़िंदगी वहीं बसने का इरादा कर लिया और बैंक की नौकरी छोड़कर स्थायी रूप से वहीं रहने लगा, लेकिन जब कर्ज़दारों ने परेशान करना शुरू किया तो उसने एक दिन अपने झोंपड़े में आग लगा ली, जिसकी वजह से वह मानसिक रूप से सुन्न हो गया और कुछ दिनों बाद चौदहवीं का चाँद देख कर ही वह मर गया।
सआदत हसन मंटो
पेशावर से लाहौर तक
जावेद पेशावर से ही ट्रेन के ज़नाना डिब्बे में एक औरत को देखता चला आ रहा था और उसके हुस्न पर फ़िदा हो रहा था। रावलपिंडी स्टेशन के बाद उसने जान-पहचान बढ़ाई और फिर लाहौर पहुँचने तक उसने सैकड़ों तरह के मंसूबे बना डाले। लाहौर पहुँच कर जब उसे मालूम हुआ कि वह एक वेश्या है तो वह उलटे पाँव रावलपिंडी वापस हो गया।
सआदत हसन मंटो
आवारा-गर्द
दुनिया की सैर पर निकले एक यूरोपीय जर्मन लड़के की कहानी। वह पाकिस्तान से भारत आता है और बंबई में एक सिफ़ारिशी मेज़बान का मेहमान बनता है। बंबई में वह कई दिन रुकता है, लेकिन सारा सफ़र पैदल ही तय करता है। रात को खाने की मेज़ पर अपनी मेज़बान से वह यूरोप, जर्मन, द्वितीय विश्व युद्ध, नाज़ी और अपने अतीत के बारे में बात करता है। भारत से वह श्रीलंका जाता है जहाँ सफ़र में एक सिंघली बौद्ध उसका दोस्त बन जाता है। वह दोस्त उसे नदी में नहाने की दावत देता है और खु़द डूबकर मर जाता है। लंका से होता हुआ है वह सैलानी लड़का वियतनाम जाता है। वियतनाम में जंग जारी है और जंग की एक गोली उस नौजवान यूरोपीय आवारागर्द को भी लील जाती है।
क़ुर्रतुलऐन हैदर
हुस्न की तख़लीक़
यह एक ऐसे जोड़ी की कहानी है, जो अपने समय में सबसे ख़ूबसूरत और ज़हीन जोड़ी थी। दोनों की मोहब्बत की शुरुआत कॉलेज के दिनों में हुई थी। फिर पढ़ाई के बाद उन्होंने शादी कर ली। अपनी बे-मिसाल ख़ूबसूरती के कारण वे अपने आने वाले बच्चे की ख़ूबसूरती के बारे में सोचने लगे। होने वाले बच्चे की ख़ूबसूरती की सोच उनके ज़ेहन पर कुछ इस तरह हावी हो गई कि वे दिन-रात उसी के बारे में बातें किया करते। फिर उनके यहाँ बच्चा पैदा भी हुआ, लेकिन वह कोई साधारण बच्चा नहीं था बल्कि अपने आप में एक नमूना था।
सआदत हसन मंटो
ख़लाई दौर की मुहब्बत
भविष्य में अंतरिक्ष में आबाद होने वाली दुनिया का ढाँचा इस कहानी का विषय है। एक लड़की बरसों से अंतरिक्ष स्टेशनों पर रह रही है। वह लगातार ग्रहों और उपग्रहों की यात्राएँ करती रहती है और अपने काम को आगे बढ़ाती रहती है। अपनी इन्हीं व्यस्तताओं के कारण उसे इतना भी समय नहीं मिलता कि वह धरती पर रहने वाले अपने परिवार से कुछ पल बात कर सके। इन्हीं यात्राओं में उसे एक शख़्स से मोहब्बत हो जाती है। उस शख़्स से एक बार मिलने के बाद दोबारा मिलने के लिए उसे बीस साल का लम्बा इंतज़ार करना पड़ता है। इस बीच वह अपने काम को आगे बढ़ाती रहती है, ताकि आने वाली पीढ़ी के लिए मोहब्बत करना आसान हो सके।
अख़्तर जमाल
सुना है आलम-ए-बाला में कोई कीमिया-गर था
एक ऐसी शख्स की कहानी जो मोहब्बत तो करता है मगर उसका इज़हार करने की कभी हिम्मत नहीं कर पाता। पड़ोसी होने के बावजूद वह परिवार में एक फ़र्द की तरह रह रहा था और जहाँ-जहाँ वालिद साहब की पोस्टिंग होती रही मिलने आता रहा। ख़ानदान वाले सोचते रहे कि वह उनकी छोटी बेटी से मोहब्बत करता है। मगर वे तो उनकी बड़ी बेटी से मोहब्बत करता है। उसकी ख़्वाहिश थी कि काश, वह उसे एक बार ‘डार्लिंग’ कह सके।
क़ुर्रतुलऐन हैदर
मेरा हमसफ़र
अलीगढ़ से अमृतसर लौटते एक छात्र की कहानी है। वह ट्रेन में सवार हुआ तो उसे अलविदा कहने आए उसके साथी ने उससे कोई ऐसी बात कही कि उसने उसे पागल कहकर झटक दिया। ट्रेन में उसके साथ सफ़र कर रहे नौजवान ने सोचा कि वह उसे पागल कह रहा है। बात करने पर पता चला कि वह नौजवान अपने घर से सिर्फ़ इसलिए निकल आया है क्योंकि उसका यहूदी बाप उसे पागल कहता है। इसी कारण उसकी बीवी भी उसे छोड़कर अपने मायके चली जाती है।
सआदत हसन मंटो
मीठा माशूक़
यह उस वक़्त की कहानी है जब रेल ईजाद नहीं हुई थी और लोग पैदल, ऊँट या फिर घोड़ों पर सफ़र किया करते थे। लखनऊ शहर में एक शख़्स पर मुक़दमा चल रहा था और वह शख़्स शहर से काफ़ी दूर रहता था। मुक़दमे की तारीख़ पर हाज़िर होने के लिए वह अपने क़ाफ़िले के साथ शहर के लिए रवाना हो गया। साथ में नज़राने के तौर पर मिठाइयों का एक टोकरा भी था। पूरे रास्ते उस 'मीठे माशूक़' की वजह से उन्हें कुछ ऐसी परेशानियों का सामना करना पड़ा कि वहआराम से सो तक नहीं सके।
चौधरी मोहम्मद अली रुदौलवी
नफ़रत
यह एक ऐसी औरत की कहानी है जिसकी एक मामूली से वाक़िआ ने पूरी ज़िंदगी ही बदल दी। उसे ज़र्द रंग जितना पसंद था उतना ही बुर्क़ा ना-पसंद। उस दिन जब वह अपनी ननद के साथ एक सफ़र पर जा रही थी तो उसने ज़र्द रंग की ही साड़ी पहन रखी थी और बुर्क़े को उतार कर एक तरफ़ रख दिया था। मगर लाहौर स्टेशन पर बैठी हुई जब वे दोनों गाड़ी का इंतेज़ार कर रही थी वहाँ उन्होंने एक मैले-कुचैले आदमी की पसंद-नापसंद सुनी तो उन्होंने ख़ुद को पूरी तरह ही बदल लिया।
मुमताज़ मुफ़्ती
इश्क़-ए-बिल्-वास्ता
कहानी में अनमेल मोहब्बत की अक्कासी की गई है जिसमें सियासत, फ़लसफ़ा और इसके साथ ही मर्द की ज़िंदगी में औरत की मुदाख़िलत पर तब्सिरा है। एक पार्टी से वापस आने के बाद वे दोनों एक जज साहब के यहाँ तशरीफ़ ले गए, वहाँ जज साहब तो नहीं मिले, लेकिन एक नई ख़ातून ज़रूर मिली। वह नज़रियाती तौर पर कम्यूनिस्ट थी। वह उसके साथ घूमने निकल गए। यह तफ़रीह उस नज़रियात में शामिल होने जाने का इशारा था।