तग़ाफ़ुल पर ग़ज़लें
तग़ाफ़ुल क्लासिकी उर्दू
शायरी के माशूक़ के आचरण का ख़ास हिस्सा है । वो आशिक़ के विरह की पीड़ा से परीचित होता है । वो आशिक़ की आहों और विलापों को सुनता है । लेकिन इन सब से अपनी बे-ख़बरी का दिखावा करता है । माशूक़ का ये आचरण आशिक़ के दुख और तकलीफ़ को और बढ़ाता है । आशिक़ अपने माशूक़ के तग़ाफ़ुल की शिकायत भी करता है । लेकिन माशूक़ पर इस का कोई असर नहीं होता । यहाँ प्रस्तुत शायरी में आशिक़-ओ-माशूक़ के इस आचरण के अलग-अलग रंगों को पढ़िए और उर्दू शायरी के इश्क़-रंग का आनंद लीजिए ।