आगरा पर ग़ज़लें
शहरों को मौज़ू बना कर
शायरों ने बहुत से शेर कहे हैं, तवील नज़्में भी लिखी हैं और शेर भी। इस शायरी की ख़ास बात ये है कि इस में शहरों की आम चलती फिरती ज़िंदगी और ज़ाहिरी चहल पहल से परे कहीं अन्दुरून में छुपी हुई कहानियाँ क़ैद हो गई हैं जो आम तौर पर नज़र नहीं आतीं और शहर बिलकुल एक नई आब-ओ-ताब के साथ नज़र आने लगते हैं। आगरा पर ये शेरी इन्तिख़ाब आप को यक़ीनन उस आगरा से मुतआरिफ़ करायेगा जो वक़्त की गर्द में कहीं खो गया है।