रुस्वाई पर नज़्में
रुसवाई और बदनामी का
डर तो समाज की कल्पना के साथ ही पैदा हुआ होगा लेकिन रुसवाई को गर्व के साथ बयान करने का चलन शायद उर्दू शायरी ने आ’म किया। ख़ास तौर से अगर यह रुसवाई इश्क़ का इनआम हो। क्लासीकी शायरी में इसे इतने अलग-अलग ढंग से बरता गया है कि देखते ही बनती है। पेश है रुसवाई शायरी का यह दिलकश अन्दाज़ः