रक़ीब पर ग़ज़लें
खेल का अस्ल मज़ा तो
तब आता है जब आपका कोई प्रतिद्वंदी भी सामने हो जो जिसकी हार में आपको अपनी जीत, और जिसकी जीत में अपनी हार दिखाई दे। शायरी में रक़ीब इसी प्रतिद्वंदी को कहते है जिसे महबूब की वह इनायतें हासिल होती हैं जिनके लिए सच्चा आशिक़ तड़पता और मचलता रहता है। दरअस्ल रक़ीब उर्दू शायरी का ऐसा विलेन है जिसकी अस्लियत महबूब से हमेशा पोशीदा रहती है और आशिक़ जलने और कुढ़ने के सिवा कुछ नहीं कर पाता। रक़ीब शायरी के इस इन्तिख़ाब से आप सब कुछ ब-आसानी समझ सकते हैः