क़िस्मत पर क़तआ'त
क़िस्मत एक मज़हबी तसव्वुर
है जिस के मुताबिक़ इंसान अपने हर अमल में पाबंद है। वो वही करता जो ख़ुदा ने उस की क़िस्मत में लिख दिया है और उस की ज़िंदगी की सारी शक्लें इसी लिखे हुए के मुताबिक़ ज़हूर पज़ीर होती हैं। शयरी में क़िस्मत के मौज़ू पर बहुत सी बारीक और फ़लसफ़ियाना बातें भी की गई हैं और क़िस्मत का मौज़ू ख़ालिस इश्क़ के बाब में भी बर्ता गया है। इस सूरत में आशिक़ अपनी क़िस्मत के बुरे होने पर आँसू बहाता है।