कालू भंगी
’कालू भंगी’ समाज के सबसे निचले तबक़े की दास्तान-ए-हयात है। उसका काम अस्पताल में हर रोज़ मरीज़ों की गंदगी को साफ़ करना है। वह तकलीफ़ उठाता है जिसकी वजह पर दूसरे लोग आराम की ज़िंदगी जीते हैं। लेकिन किसी ने भी एक लम्हे के लिए भी उसके बारे में नहीं सोचा। ऐसा लगता है कि कालू भंगी का महत्व उनकी नज़र में कुछ भी नहीं। वैसे ही जैसे जिस्म शरीर से निकलने वाली ग़लाज़त की वक़अत नहीं होती। अगर सफ़ाई की अहमियत इंसानी ज़िंदगी में है, तो कालू भंगी की अहमियत उपयोगिता भी मोसल्लम है।
कृष्ण चंदर
कबूतरों वाला साईं
"कहानी इंसानी आस्थाओं और मिथ्या लांछनों पर आधारित है। माई जीवाँ के नीम पागल बेटे को चमत्कारी समझना, सुंदर जाट डाकू जिसका वुजूद तक संदिग्ध है उससे गाँव वालों का खौफ़ज़दा रहना, नीती के ग़ायब होने को सुंदर जाट से वाबस्ता करना, ऐसी परिकल्पनाएं हैं जिनकी सत्यता का कोई तर्क नहीं।"
सआदत हसन मंटो
गिलगित ख़ान
यह होटल में काम करने वाले एक बहुत बदसूरत नौकर की कहानी है। उसकी बदसूरती के कारण उसका मालिक उसे पसंद करता है और न ही वहाँ आने वाले ग्राहक। मगर अपनी मेहनत और शिष्टाचार से वह सभी का लोकप्रिय बन जाता है। अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए वह मालिक की नापसंदगी के बावजूद एक कुत्ते का पिल्ला पाल लेता है। बड़ा होने पर कुत्ते को पेट की कोई बीमारी हो जाती है, तो उसे ठीक करने के लिए गिलगित ख़ान चोरी से अपने मालिक का बटेर मारकर कुत्ते को खिला देता है।
सआदत हसन मंटो
मौसम की शरारत
यह एक ऐसे नौजवान की कहानी है, जो कश्मीर घूमने गया है। सुबह की सैर के वक़्त वह वहाँ के आकर्षक दृश्य को देखता है और उसमें खोया हुआ चलता चला जाता है। तभी उसे कुछ भैंसो, गायों और बकरियों को लिए आती एक चरवाहे की लड़की दिखाई देती है। वह उसे इतनी ख़ूबसूरत नज़र आती है कि उसे उससे मोहब्बत हो जाती है। लड़की भी घर जाते हुए तीन बार उसे मुड़कर देखती है। कुछ देर उसके घर के पास खड़े रहने के दौरान बारिश होने लगती है, और जब तक वह डाक बंगले पर पहुँचता है तब तक वह पूरी तरह भीग जाता है।
सआदत हसन मंटो
कुत्ते की दुआ
यह कहानी एक कुत्ते की अपने मालिक के प्रति वफ़ादारी की एक अनोखी दास्तान बयान करती है। उस व्यक्ति ने अपनी और अपने कुत्ते गोल्डी की कहानी सुनाते हुए बीती ज़िंदगी की कई घटनाओं का ज़िक्र किया। उन घटनाओं में उन दोनों के आपसी सम्बंधों और एक-दूसरे के प्रति लगाव के बारे में कई प्रेरक प्रसंग थे। मगर वास्तविक कहानी तो यह थी कि जब एक बार मालिक बीमार पड़ा तो कुत्ते ने उसके लिए ऐसी दुआ माँगी कि मालिक तो ठीक हो गया, पर कुत्ता अपनी जान से जाता रहा।
सआदत हसन मंटो
ना-मुकम्मल तहरीर
यह एक ऐसी शख़्स की कहानी है, जिसे एक पहाड़ी सैर के दौरान एक लड़की से मोहब्बत हो जाती है। लड़की का नाम वज़ीर है और वह एक गडरिये की बेटी होती है। वह कम-उम्र और ख़ूबसूरत लड़की है। जब वह अपनी बकरियों को बुलाती है तो उसकी आवाज़़ बहुत प्यारी लगती है। वह उसकी आवाज़़ को सुनता है और उसे बार-बार बकरियों को बुलाने के लिए कहता है। अचानक उसके मन में न जाने क्या आता है कि वह उसे अपनी बाँहों में भर लेता है और उसके होंठों को चूमना चाहता है, पर वज़ीर उसे एक झटके से अपने से अलग कर देती है। इससे उसके होंठों पर उभरी वह तहरीर ना-मुकम्मल ही रह जाती है।
सआदत हसन मंटो
मंज़िल
यह एक ऐसे बच्चे की कहानी है जिसे लगता है कि उसके माँ-बाप उससे प्यार नहीं करते। उसने अपने माँ-बाप का प्यार हासिल करने के लिए उनकी ख़िदमतें की थी। घर के काम-काज में हाथ बंटाया था। कुत्ता पाला था। आड़ी-तिरछी लकीरें खिंची थीं। भाइयों से दोस्ती की, बिल्ली पाली, मगर कोई भी अपना न हो सका। मिट्टी के खिलौनों में जी लगाना चाहा वो भी दूर हो गए। सब तरफ से मायूस होकर उसने मरने का फैसला कर लिया। मगर तभी उसकी ज़िंदगी में एक लड़की आई और सब कुछ बदल गया।
वाजिदा तबस्सुम
डालन वाला
यह कहानी बचपन की यादों के सहारे अपने घर और घर के वसीले से एक पूरे इलाक़े की, और उस इलाक़े द्वारा विभिन्न व्यक्तियों के जीवन की चलती-फिरती तस्वीरें पेश करती है। समाज के अलग-अलग वर्गों से सम्बंध रखने वाले, पृथक आस्थाएं और विश्वास रखने वाले, विभन्न लोग हैं जो अपनी-अपनी समस्याओं और मर्यादाओं में बंधे हैं।
क़ुर्रतुलऐन हैदर
रुमूज़-ए-ख़ामोशी
मैं चार बजे की गाड़ी से घर वापिस आ रहा था। दस बजे की गाड़ी से एक जगह गया था और चूँकि उसी रोज़ वापिस आना था लिहाज़ा मेरे पास अस्बाब वग़ैरा कुछ ना था। सिर्फ एक स्टेशन रह गया था। गाड़ी रुकी तो मैंने देखा कि एक साहिब सैकिण्ड क्लास के डिब्बे से उतरे। उनका क़द्द-ए-बला
मिर्ज़ा अज़ीम बेग़ चुग़ताई
लार्वे
अज़ीज़-उद-दीन एक ग़रीब नौकरी पेशा शख़्स है। अपने झोंपड़े के बाहर बने गड्ढे में लार्वों को देखकर उसके ज़ेहन में कई तरह के ख़यालात आते हैं। उन लार्वों को ज़िंदा रखने के लिए वो हर मुम्किन कोशिश करता है कि गड्ढे में गंदा पानी जमा रहे क्योंकि साफ़ पानी में लार्वे मर जाते हैं। उसकी बीवी अज़ीज़ा को मजिस्ट्रेट प्रीतम दास बतौर ख़ादिमा अपने साथ कश्मीर ले जाते हैं लेकिन वहाँ से तार आता है कि अज़ीज़ा को पहाड़ का सेहतमंद पानी रास न आया। वो डायरिया और पेचिश की शिकायत में मुब्तिला हो कर अचानक मर गई। अज़ीज़-उद-दीन के मुँह से बस इतना ही निकला, ऐ ख़ुदा तू अपनी बारिश को थाम ले।
राजिंदर सिंह बेदी
उस्ताद शम्मो ख़ाँ
यह कहानी उस्ताद शम्मो खाँ की है। एक ज़माने में वह पहलवान था। पहलवानी में उसने काफ़ी नाम कमाया था और अब अच्छी ख़ासी ज़िंदगी गुजार रहा था कि अब ज़िंदगी के बाक़ी दिन कबूतर-बाज़ी का शौक़ पूरा करके गुज़र रहा है। पास ही रहने वाले शेख जी भी कबूतर-बाज़ी का शौक़ रखते थे। अब कबूतर-बाज़ी के इस शौक़ में उन दोनों के बीच किस-किस तरह के दांव-पेंच होते हैं और कौन बाज़ी मारता है, यह सब जानने के लिए यह कहानी पढ़ें।
अहमद अली
क़ैदी की सरगुज़श्त
जेल में बंद एक ऐसे क़ैदी की कहानी है जो सियासी मुजरिम है। क़ैद में बाहर की दुनिया और बीती ज़िंदगी को याद करके वह उदास हो जाता है। फिर एक रोज़ उसके पास एक बिल्ली का बच्चा आ जाता है। बिल्ली का बच्चा उसके साथ रहने लगता है। एक दिन अचानक उस क़ैदी की तबियत ख़राब होती है और वह तड़प-तड़प कर मर जाता है। सुबह जब संतरी उसे देखने आता है तो उसके साथ ही वह बिल्ली के बच्चे को भी मरा हुआ पाता है।