निगाह पर ग़ज़लें
माशूक़ की एक निगाह के
लिए तड़पना और अगर निगाह पड़ जाए तो उस से ज़ख़्मी हो कर निढाल हो जाना आशिक़ का मुक़द्दर होता है। एक आशिक़ को नज़र अंदाज करने के दुख, और देखे जाने पर मिलने वाले एक गहरे मलाल से गुज़रना होता है। यहाँ हम कुछ ऐसे ही मुंतख़ब अशआर पेश कर रहे हैं जो इश्क़ के इस दिल-चस्प बयानिए को बहुत मज़ेदार अंदाज़ में समेटे हुए हैं।