ये ग़ाज़ी ये तेरे पुर-अस्रार बन्दे
यह कहानी पश्चिमी जर्मनी में जा रही एक ट्रेन से शुरू होती है। ट्रेन में पाँच लोग सफ़र कर रहे हैं। उनमें एक ब्रिटिश प्रोफे़सर है और उसके साथ उसकी बेटी है। साथ में एक कनाडाई लड़की और एक ईरानी प्रोफेसर हैं। शुरू में सब ख़ामोश बैठे रहते हैं। फिर धीरे-धीरे आपस में बातचीत करने लगता है। बातचीत के दौरान ही कनाडाई लड़की ईरानी प्रोफे़सर को पसंद करने लगती है। ट्रेन का सफ़र ख़त्म होने के बाद भी वे मिलते रहते हैं और अपने ख़ानदानी शजरों की उधेड़-बुन में लगे रहते हैं। उसी उधेड़-बुन में वे एक-दूसरे के क़रीब आते हैं और एक ऐसे रिश्ते में बंध जाते हैं जिसे कोई नाम नहीं दिया जाता। चारों तरफ जंग का माहौल है। ईरान में आंदोलन हो रहे हैं। इसी बीच एक दिन एयरपोर्ट पर धमाका होता है। उस बम-धमाके में ईरानी प्रोफे़सर और उसके साथी मारे जाते हैं। उस हादसे का कनाडाई लड़की पर जो असर पड़ता है वही इस कहानी का निष्कर्ष है।
क़ुर्रतुलऐन हैदर
पाली हिल की एक रात
ड्रामे के शक्ल में लिखी गई एक ऐसी कहानी है जिसके सभी किरदार फ़र्ज़ी हैं। परिवार जब इबादत की तैयारी कर रहा था तभी बारिश में भीगता हुआ एक विदेशी जोड़ा दरवाज़ा खटखटाता है और अंदर चला आता है। बातचीत के दौरान पता चलता है कि उनका ताल्लुक ईरान से है। इसके बाद घटनाओं का एक ऐसा सिलसिला शुरू होता है जो सबकुछ बदल कर रख देता है।
क़ुर्रतुलऐन हैदर
वक़्फ़ा
अतीत की यादों के सहारे बे-रंग ज़िंदगी में ताज़गी पैदा करने की कोशिश की गई है। कहानी का प्रथम वाचक अपने स्वर्गीय बाप के साथ गुज़ारे हुए वक़्त को याद कर के अपनी बिखरी ज़िंदगी को आगे बढ़ाने की जद-ओ-जहद कर रहा है जिस तरह उसका बाप अपने घर बनाने के हुनर से पुरानी और उजाड़ इमारतों की मरम्मत करके क़ाबिल-ए-क़बूल बना देता था। नय्यर मसऊद की दूसरी कहानियों की तरह इसमें भी ख़ानदानी निशान और ऐसी विशेष चीज़ों का ज़िक्र है जो किसी की शनाख़्त बरक़रार रखती हैं।
नैयर मसूद
सुंदरता का राक्षस
यह समाज में औरतों के बराबरी के अधिकार के डिस्कोर्स के गिर्द घूमती कहानी है, जिसमें दो लड़कियाँ एक स्वामी के पास औरत की गै़र-बराबरी का सवाल लेकर जाती हैं। मगर वहाँ उनकी स्वामी से तो मुलाक़ात नहीं होती, उनके शिष्य मिलते हैं। उनमें से एक उन्हें रानी विजयवंती की कहानी के ज़रिए बताता है कि पुरुष औरत को देवी बना सकता है, उसकी सुंदरता के लिए उसकी पूजा कर सकता है। उस पर जान तक न्यौछावर कर सकता है। मगर कभी उसे अपने बारबर नहीं समझ सकता है।
मुमताज़ मुफ़्ती
ज़नान-ए-मिस्र और ज़ुलैख़ा
यह कहानी इस्लामी परम्परा के नबी यूसुफ़ और ज़ुलैख़ा के मोहब्बत की दास्तान को पुनर्परिभाषित करती है। हालाँकि इस कहानी में उस दास्तान को एक मर्द की बजाए एक औरत के दृष्टिकोण से देखा गया है। इस कहानी में ज़ुलैख़ा का यूसुफ़ से मिलना और फिर युसुफ़ के बंदी बनाए जाने तक की हर घटना को ज़ुलैख़ा अपने दृष्टिकोण से बयान करती हुई साबित करती है कि उन दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ वह ज़ुलैखा ने अपने स्वार्थवश नहीं बल्कि ख़ुदा के हुक्म से किया।
अख़्तर जमाल
सासान-ए-पंजुम
यह कहानी निकृष्ट लोगों के पतन का मातम है। सासान-ए-पंजुम के ज़माने की इमारत पर अंकित इबारत पढ़ने और उसे समझने के लिए पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञ बुलाए जाते हैं। वो अपनी तमामतर कोशिशों के बावजूद इबारत पढ़ने में कामयाब नहीं होते। तहक़ीक़ के बाद ये साबित कर दिया जाता है कि सासान-ए-पंजुम का वुजूद फ़र्ज़ी है।