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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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मुफ़्लिसी पर नज़्में

मुफ़्लिसी से शायद आप

न गुज़रे हों लेकिन इंसानी समाज का हिस्सा होने की वजह से इस का एहसास तो कर सकते हैं। अगर कर सकते हैं तो अंदाज़ा होगा कि मुफ़्लिसी किस क़दर जाँ-सोज़ होती है और साथ ही एक मुफ़्लिस आदमी के तईं समाज का रवैय्या क्या होता है वो किस तरह समाजी अलाहदगी का दुख झेलता है। हमारा ये शेअरी इंतिख़ाब मुफ़्लिस और मुफ़्लिसी के मसाइल पर एक तख़लीक़ी मुकालिमा है आप उसे पढ़िए और ज़िंदगी का नया शऊर हासिल कीजिए।

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