मज़हब पर ग़ज़लें
मज़हब पर गुफ़्तुगू हमारी
उमूमी ज़िंदगी का एक दिल-चस्प मौज़ू है। सभी लोग मज़हब की हक़ीक़त, इंसानी ज़िंदगी में उस के किरदार, उस के अच्छे बुरे असरात पर सोचते और ग़ौर-ओ-फ़िक्र करते हैं। शायरों ने भी मज़हब को मौज़ू बनाया है उस के बहुत से पहलुओं पर अपनी तख़्लीक़ी फ़िक्र के साथ अपने ख़यालात का इज़हार किया है। ये शायरी औप को मज़हब के हवाले से एक नए मुकालमे से मुतआरिफ़ कराएगी।