ख़ुदा पर क़तआ'त
ख़ुदा और ईश्वर में रचनाकारो
की दिलचस्पी हमेशा से रही है । शायर और रचनाकार अपने तख़्लीक़ी लम्हों में यानी रचना के समय ख़ुदा से लड़ते-झगड़ते हैं और छेड़-छाड़ भी करते हैं । उसके अस्तित्व और स्वायत्तता पर सवाल खड़े करते हैं । रचना के कुछ लम्हे ऐसे भी आते हैं जब ख़ुद रचना ईश्वर का प्रमाण बनने लगती है । सूफ़ी शायरों के यहाँ ख़ुदा से राज़-ओ-नियाज़ अर्थात रहस्य की बातें और दुआ का एक अलग रूप नज़र आता है । यहाँ प्रस्तुत शायरी से आप को अंदाज़ा होगा कि इंसान और ख़ुदा के रिश्तों में कितनी विविधता है ।