जन्नत पर ग़ज़लें
जन्नत का तसव्वुर हज़ारों
साल पुराना है इन्सान की कल्पना की उड़ान जो कुछ अच्छा देख सकती है और अपने दामन में समेटना चाहती है वह सब कुछ जन्नत में मौजूद है। शायरों को जन्नत से एक ख़ास लगाव इस लिए भी है कि जन्नत के नज़्ज़ारे कभी-कभी महबूब की गलियों की झलक भी पेश करते हैं। जन्नत शायरी के ये नज़्ज़ारे शायद आपको भी पसंद आएः