जल्वा पर ग़ज़लें
हुस्न के जल्वे हम सबने
अपनी अपनी आँखों से देखे हैं और अपने अपने हिसाब से, लेकिन एक तख़्लीक़-कार जल्वा-ए-हुस्न को किन किन सूरतों में देखता है और इस के बारे में कैसे कैसे इन्किशाफ़ात करता है क्या हम इस से वाक़िफ़ हैं? अगर नहीं तो ये इन्तिख़ाब आप ही के लिए है। इसे पढ़िए और जलवों की चका चौंद से लुत्फ़ उठाइये।