हवा पर ग़ज़लें
हवा का ज़िक्र आपको शायरी
में बार-बार मिलेगा। हवा का किरदार ही इतना मुख़्तलिफ़-उल-जिहात और मुतनव्वे है कि किसी न किसी सम्त से इस का ज़िक्र आ ही जाता है। कभी वो चराग़ों को बुझाती है तो कभी जीने का इस्तिआरा बन जाती है और कभी ज़रा सी ख़ुनकी लिए हुए सुब्ह की सैर का हासिल बन जाती है। हवा को मौज़ू बनाने वाले अशआर का ये इन्तिख़ाब आप के लिए हाज़िर है।