घर पर ग़ज़लें
घर के मज़मून की ज़्यादा-तर
सूरतें नई ज़िंदगी के अज़ाब की पैदा की हुई हैं। बहुत सी मजबूरियों के तहत एक बड़ी मख़लूक़ के हिस्से में बे-घरी आई। इस शायरी में आप देखेंगे कि घर होते हुए बे-घरी का दुख किस तरह अंदर से ज़ख़्मी किए जा रहा है और रूह का आज़ार बन गया है। एक हस्सास शख़्स भरे परे घर में कैसे तन्हाई का शिकार होता है, ये हम सब का इज्तिमाई दुख है इस लिए इस शायरी में जगह जगह ख़ुद अपनी ही तस्वीरें नज़र आती हैं।