फ़ासला पर ग़ज़लें
क़रीब हो कर दूर होने
और दूर हो कर क़रीब होने की जो मुतज़ाद सूरतें हैं उन्हें शायरी में ख़ूब ख़ूब बरता गया है। एक आशिक़ इन तजर्बात से कसरत से गुज़रता है और इन लमहात को आम इंसानों से मुख़्तलिफ़ सतह पर जीता है। ये शायरी ज़िंदगी को शुऊर की एक वसी सतह पर देखती और परखती है। ये इन्तिख़ाब पढ़िए।