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आबला पर ग़ज़लें

शायर और रचनाकार दो स्तर

पर जीवन व्यतीत करते हैं एक वो जिसे भौतिक जीवन कहा जाता है और दूसरे वो जिसे उनकी काल्पनिक दुनिया और रचनात्मकता में महसूस किया जाता है । ये दूसरी ज़िंदगी उनकी अपनी होती है और उनकी काल्पनिक दुनिया में बसने वाले चरित्रों की भी । आबला-पाई (पांव में फोड़ा और छाले पड़ना / थका हुआ) शायर के दूसरे जीवन का मुक़द्दर है । क्लासिकी शायरी में हमेशा प्रेमी को तबाह-ओ-बर्बाद होना होता है , वो जंगलों की धूल फाँकता है, बयाबानों की ख़ाक उड़ाता है ,गरेबान चाक करता है,यानी पागल-पन का दौरा पड़ता है । जुदाई और विरह की ये अवस्थाएं प्रेमी के लिए प्रेम और इश्क़ की बुलंदी होती हैं । उर्दू की आधुनिक शायरी में आबला-पाई इश्क़ और उसके दुख के रूपक के रूप में मौजूद है ।

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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