घर तक
स्टोरीलाइन
अपने गाँव जाते एक ऐसे शख़्स की कहानी, जो रास्ता भटक गया है। उसके साथ एक सहायक भी है जिसे वह रास्ते में कहानी सुनाता है। रास्ता तलाश करते शाम हो जाती है तो उन्हें दूर से मशाल जलने और औरतों के रोने की आवाज़ आती है। क़रीब जाने पर पता चलता है कि रोने वाली उसकी माँ और बहन हैं। वे दोनों उसके छोटे भाई की क़ब्र के पास रो रही हैं, जिसके लिए वह शहर से खिलौने और कपड़े लेकर आया था।
लिंगा
स्वामी
हम रास्ता भूल गए हैं। लेकिन मेरा ख़्याल है, हमारा गाँव यहाँ से क़रीब ही है। उधर देखिए स्वामी। सफ़ेद लकीर दिखाई दे रही है ना, वही होगी सड़क। नहीं वो तो पानी बह रहा है। एक छोटा सा नाला।
इधर आ, इस टीले पर चढ़ कर देखें। शायद कुछ पता चले।
हम चढ़ने लगे। लिंगा बड़ी मुश्किल से चल रहा था। पाँव कीचड़ में धँस जाते। मैं उसके पीछे घोड़े पर हो लिया। अंधेरा हो चला था, हल्की-हल्की बूँदा-बाँदी हो रही थी। गर्मी की छुट्टियों में मैं अपने गाँव जा रहा था। बंगलौर से बस में चला। तहसील पहुँच कर वहाँ शेख़ दाद साहब से जिनसे मेरी जान पहचान थी, घोड़ा लिया और उनके नौकर लिंगा को साथ लिए चला था। लिंगा रास्ते से अच्छी तरह वाक़िफ़ न था, लेकिन में उधर से कई दफ़ा गुज़रा हूँ। जाने कैसे हम उस शाम भटक गए।
लिंगा
जी स्वामी।
सूटकेस का बोझ ज़ियादा तो नहीं मालूम हो रहा?
जी नहीं, बहुत हल्का है। ये देखने में बड़ा मालूम होता है बस। क्या रखा है स्वामी इसमें?
बस, चंद किताबें, दो जोड़े कपड़े, भाई के लिए ज़री की टोपी और जूते, बहन के लिए दो गुड़ियाँ। बस यही।
बंगलौर में आपके दिन रहे स्वामी?
पिछली गर्मियों के बाद अब लौट रहा हूँ। देखा एक साल में ये जगह इतनी बदल गई है। सड़क के दोनों तरफ़ झाड़ियाँ और पौदे भी बदल गए हैं। इसीलिए तो समझ में नहीं आ रहा किस सम्त जा रहे हैं।
हम तीनों, लिंगा, मैं और घोड़ा थक कर चूर हो रहे थे। कुछ देर ख़ामोशी से यूँही चलते रहे। मुझे घर जल्दी पहुँचने की बेताबी थी। मैं माँ से मिलना चाहता था, नन्हे को देखना चाहता था जो टोपी का इंतिज़ार कर रहा होगा। पिताजी को सुनाना चाहता था कि मैंने इम्तिहान में पर्चे कितने अच्छे किए हैं और भी कितनी सारी बातें थीं जो घर वालों को सुनानी थीं।
हम चढ़ाई पर चढ़ कर चारों तरफ़ देखने लगे लेकिन बे-सूद। रास्ता सुझाई नहीं दे रहा था। सही रास्ता मालूम करने की सूरत नज़र नहीं आ रही थी। घोड़े पर बैठे-बैठे ही मैंने सिगरेट जलाने की कोशिश की। हवा इतनी तेज़ थी, दियासलाई बुझ-बुझ जाती। आख़िर बड़ी मुश्किल से सिगरेट जलाया। सन्नाटा, वीरानी और हवा की साएं-साएं। हमें सारी रात यहीं पड़ा रहना होगा, इस बियाबान में। घोड़ा जैसे मेरी बात समझ गया, इसके कान खड़े हो गए, लिंगा बोला, ज़रा सुनिए सरकार। हमारी दाहिनी जानिब कुत्ते भौंकने की आवाज़ आ रही थी। मैंने कहा, चल उसी तरफ़ चलें, शायद कोई गाँव मिल जाए। पेड़ पौदों को देखते चलें, कुछ न कुछ निशान मिल जाएगा। हम ज़रा दाहिने को मुड़ कर उतरने लगे लेकिन कुत्ते का भौंकना फिर सुनाई न पड़ा। लिंगा यकायक रुक गया।
वो... वो देखिए उधर। मैंने देखा जिधर उसने इशारा किया था, ओह! वो तो एक पीड़ है। डरपोक कहीं का, उधर आजा। घोड़े के साथ चल, घबरा नहीं, मैं तुझे एक कहानी सुनाउंगा। तुझे पढ़ना लिखना आता है क्या?
कुछ-कुछ आता है स्वामी, अच्छा सुनाइए कहानी।
वहीं एक मेंढ़ पर हम दोनों बैठ गए। मैं लिंगा को कहानी सुनाने लगा। अंग्रेज़ी फ़ौज कावेरी नदी पार करके कैसे आई... खड़ी दोपहर में अंग्रेज़ क़िले पर चढ़ आए और उस पर अपना झंडा चढ़ा दिया... उस वक़्त सुल्तान टीपू, खाने पर बैठे थे। दो निवाले ही ले पाए थे कि अंग्रेज़ों की चढ़ाई की ख़बर सुनी। खाना छोड़ उठ खड़े हुए। घोड़े पर सवार होकर क़िले के पास आए... शाम तक डट कर लड़ते रहे। सात गोलियाँ खाईं फिर भी जान बाक़ी थी। वो लाशों में पड़े थे। एक गोरे ने टीपू का कमरबंद निकालना चाहा। टीपू ने तलवार का वार किया। सिपाही ने गोली चलाई। उस गोली से वो ख़त्म हो गए... फिर कहानी का बक़िया हिस्सा अंग्रेज़ों का सुल्तान के बेटों को क़ैद करना, लालटेन लेकर टीपू की लाश तलाश करना... रात की तारीकी में सुरंगा पट्टम में लूट मार... हिरासाँ औरतों और बच्चों का रात सड़कों पर गुज़ारना, दूसरी सुबह टीपू के जनाज़े का जुलूस, तज्हीज़-ओ-तक्फ़ीन... और फिर उसके बाद जो कुछ हुआ...
बड़ी दुख भरी कहानी है, स्वामी, सच कितनी दुख भरी है।
हम फिर चल पड़े। पेड़ की तरफ़ देखते हुए लिंगा ने ज़ेर-ए-लब कहा, स्वामी, पेड़ कहीं ऐसा होता है? और घोड़े के नज़दीक आ गया। बात भी ये थी कि वो पेड़ तारीकी में कुछ भयानक सा मालूम हो रहा था। ये सोच कर लड़का डर जाएगा, मैं घोड़े से नीचे उतर पड़ा, उस पेड़ को मैं अच्छी तरह जानता हूँ रे, हमारा गाँव यहाँ से बिल्कुल क़रीब है। उसी पेड़ को देख कर मेरा भाई शामना, डर गया था।
वो इस तरफ़ क्यों आ निकले थे सरकार?
पिछली गर्मियों में जब यहाँ आया था। शामना और मैं शाम में यूँही घूमने निकले। उस वक़्त उसकी उम्र सिर्फ़ आठ साल की थी। वो मुझे एक कहानी सुना रहा था। वही कहानी जो अभी मैंने सुनाई। वो इतने जोश-ओ-ख़रोश में होता कि कहानी सुनाते अपने आपको भूल जाता है। शामना बड़ा होशियार है। बड़ी अच्छी कहानियाँ सुनाता है। सुरंगा पट्टम की कहानी उसे बहुत पसंद है। वो मुझे तंग क्यों करता है मुझे सुरंगा पट्टम ले चलो। उस दिन भी कहानी सुनते-सुनते रात हो गई और हम रास्ता भूल गए और भटक कर उसी पेड़ के पास पहुँचने। शामना उस पेड़ को देख कर डर गया फिर घर पहुँचते ही उसको बुख़ार चढ़ आया और तीन दिन तक न उतरा।
तब तो यहाँ से गाँव जाने का रास्ता आपको मालूम होगा... यहाँ से गाँव और कितनी दूर है?
यहाँ से गाँव तक कोई सीधी सड़क नहीं। हमें अँधेरे में खोज लगाते जाना होगा। यहाँ से गाँव कोई आध मील होगा। ये हमारे गाँव का शमशान है।
क्या कहा स्वामी?
अरे तौबा, मैंने भूल कर शमशान का ज़िक्र उसके सामने कर दिया। ये चौदह साल का लड़का फिर डर जाए तो...
बस अब गाँव आ ही गया। यहाँ से ज़रा दाहिनी तरफ़ जाना है। ये पेड़ हमारे गाँव के पच्छिम में है। बारिश थम गई थी लेकिन तारीकी बढ़ गई थी। लिंगा पीछे की तरफ़ मुड़-मुड़ कर देखा जा रहा था। मैं जान गया वो डर गया है। इससे बात करते रहना चाहिए, मैंने सोचा।
लिंगा! उधर देखउस ने उँगली से पीछे की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, फूलों से डरता है बुज़दिल, डरपोक कहीं का!
लेकिन वहाँ स्वामी, देखिए उधर... वो इसरार कर रहा था। मैंने पीछे मुड़ कर देखा। मेंढ़ के पास जहाँ बैठ कर मैंने लिंगा को कहानी सुनाई थी, रौशनी नज़र आई और दो शक्लें आमने-सामने बैठी ज़मीन की तरफ़ तक रही थीं। झूट क्यों कहूँ, मुझे भी ज़रा डर लगा।
लिंगा! तुझे क्या दिखाई पड़ता है वहाँ?
देखिए, एक मशाल है और उसके पास...
डर मत, चल पास जाकर देखें।
देखिए उस तरफ़, देखिए। वो बे-हद सहमा हुआ था। रौशनी अब हरकत करती नज़र आई। मैंने लिंगा का हाथ थाम लिया और दूसरे हाथ में घोड़े की लगाम पकड़ ली। मैं धीरे-धीरे मेंढ़ की तरफ़ बढ़ा। जो कुछ नज़र आया था वो हमारा वहम नहीं था। दो सूरतें वाक़ई थीं और वो बात कर रही थीं। इंसानी आवाज़ सुन कर हम में हिम्मत आई और हम पेड़ के पीछे खड़े हो सुनने लगे।
हाय मेरे बच्चे, मेरे लाल, तू प्यास से तड़पता रहा। तेरे लिए दूध लाई हूँ, पी ले... कैसा था मेरा लाल और अब तू सूख कर काँटा हो गया था... हम सबको छोड़ कर कहाँ चला गया तो... रो मत तू क्या कहना चाहता था, मेरे बच्चे, तेरे होंट फड़फड़ा कर रह गए। तेरी आँखों में कितना कर्ब था! तेरी आँखें कहती थीं तू हमें छोड़ना नहीं चाहता, हाय, मेरे बच्चे, इस जंगल बियाबान में अकेला तन-ए-तन्हा, हाय भगवान क्या ये सब सच है? एक औरत कटोरे से मेंढ़ पर दूध उंडेल कर ज़ार-ओ-क़तार रो रही थी, बैन कर रही थी। हम उस धीमी रौशनी में पहचान सकते थे कि वहाँ दो औरतें हैं,، उनमें से एक छोटी लड़की है। लड़की रो-रो कर कह रही थी, हम भैया को लिख भी न सके। दो दिन के अंदर ही ये क्या हो गया। हाय। मैंने चंद क़दम आगे बढ़ाए। इतने में हमारे सामने की रौशनी मेंढ़ में पहुँच गई... फिर तीसरी आवाज़ आई। भर्राई हुई लेकिन क़दरे करख़्त।
ये क्या पागल-पन है कि ऐसी ख़ौफ़-नाक रात में तुम यहाँ आई हो। क्या तुम्हारे रोने चिल्लाने... से वो वापस आ जाएगा? मैंने आवाज़ पहचान ली। ये मेरे पिता जी की आवाज़ थी।
मेरे बच्चे, तू अँधेरे से डरता था, अब अँधेरे में अकेला पड़ा है। तू एक बार इसी जगह डर गया था और अब तू अकेला उसी जगह पड़ा है, अब तुझे डर नहीं लगता? मैं तुझे अकेला छोड़ कर घर कैसे जाऊँ। मेरी माँ फिर फूट पड़ी।
भैया टोपी और जूते लाएंगे। अब उन्हें सुरंगा पट्टम का क़िस्सा कौन सुनाएगा। भैया किसको सुरंगा पट्टम दिखाएंगे। श्यामू, मेरे श्यामू, हाय भगवान। ये मेरी बहनें थी। उस वक़्त मुझ पर क्या गुज़र रही थी मैं बयान नहीं कर सकता। ऐसा लगता था कायनात की इस बे-कराँ वुस्अत में, मैं बिल्कुल अकेला रह गया हूँ। लिंगा मेरा हाथ पकड़ कर खींच रहा था, मुझे वहाँ जाने से रोक रहा था। लेकिन मैं हाथ छुड़ा कर मेंढ़ की तरफ़ भागा। पिताजी ने लालटेन ऊपर उठाई और पूछा, कोन है?
मुझे देखते ही सब फिर फूट पड़े। नए सिरे से कर्ब उनके सीनों में उमंड आया। मैं बहुत देर तक शामना की क़ब्र पर आँसू बहाता रहा। मैंने सूटकेस से टोपी और जूते निकाले और उन्हें शामना की क़ब्र पर रख दिया। शामना ने एक बार पूछा था, भैया ये पेड़-पौदे जंगल में अकेले कैसे रहते हैं? मेरा जी चाहा सारी रात यहीं गुज़ार दूँ, शामना को अकेला न छोड़ूँ। हम बहुत देर तक वहाँ रहे। शामना की बातें करते रहे। उसकी बीमारी, उसकी मौत... वो हमारे घर का हीरा था, सब गाँव वालों को आँखों का तारा था। सबका चहीता, ज़हीन, अक़्ल-मंद, अब उसके बग़ैर ज़िंदगी बे-कैफ़ थी।
पिताजी ने आह भर कर कहा, एक न एक दिन हम सबको यहीं आना होगा।
हवा का एक झोंका जैसे अपने साथ इसका जवाब लाया, हाँ।
मेरा भाई उसी जगह जहाँ वो डर गया था, आज अकेला, अबदी नींद सो रहा था। उसे छोड़ कर हम घर की तरफ़ रवाना हुए। जी हाँ घर की तरफ़? लेकिन हमारा घर है कौन सा?
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.