पनघट की रानी
आई वो पनघट की देवी, वो पनघट की रानी
दुनिया है मतवाली जिस की और फ़ितरत दीवानी
माथे पर सिंदूरी टीका रंगीन ओ नूरानी
सूरज है आकाश में जिस की ज़ौ से पानी-पानी
छम-छम उस के बछवे बोलें जैसे गाए पानी
आई वो पनघट की देवी वो पनघट की रानी
कानों में बेले के झुमके आँखें मय के कटोरे
गोरे रुख़ पर तिल हैं या हैं फागुन के दो भँवरे
कोमल कोमल उस की कलाई जैसे कमल के डंठल
नूर-ए-सहर मस्ती में उठाए जिस का भीगा आँचल
फ़ितरत के मय-ख़ाने की वो चलती-फिरती बोतल
आई वो पनघट की देवी वो पनघट की रानी
रग-रग जिस की है इक बाजा और नस-नस ज़ंजीर
कृष्ण मुरारी की बंसी है या अर्जुन का तीर
सर से पा तक शोख़ी की वो इक रंगीं तस्वीर
पनघट बेकुल जिस की ख़ातिर चंचल जमुना नीर
जिस का रस्ता टिक-टिक देखे सूरज सा रहगीर
आई पनघट की देवी वो पनघट की रानी
सर पर इक पीतल की गागर ज़ोहरा को शरमाए
शौक़-ए-पा-बोसी में जिस से पानी छलका जाए
प्रेम का सागर बूँदें बन कर झूमा उमडा आए
सर से बरसे और सीने के दर्पन को चमकाए
उस दर्पन को जिस से जवानी झाँके और शरमाए
आई पनघट की देवी वो पनघट की रानी
- पुस्तक : kulliyat-e-saghar nizami (पृष्ठ 326)
- रचनाकार : muzaffar hanfi
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