Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

शाहिद-ए-बज़्म-ए-सुख़न नाज़ूरा-ए-मअ'नी-तराज़

ख़ुदा-ए-रेख़्ता पैग़मबर-ए-सोज़-अो-गुदाज़

यूसुफ़-ए-मुल्क-ए-मआनी पीर-ए-कनआ'न-ए-सुख़न

है तिरी हर बैत अहल-ए-दर्द को बैत-उल-हुज़न

शहीद-ए-जलवा-ए-मानी फ़क़ीर-ए-बे-नियाज़

इस तरह किस ने कही है दास्तान-ए-सोज़-अो-साज़

है अदब उर्दू का नाज़ाँ जिस पे वो है तेरी ज़ात

सर-ज़मीन-ए-शेर पर चश्मा-ए-आब-ए-हयात

तफ़्ता-दिल आशुफ़्ता-सर आतिश-नवा बे-ख़ेशतन

आह तेरी सीना-सोज़ और नाला तेरा दिल-शिकन

ख़त्म तुझ पर हो गया लुत्फ़-ए-बयान-ए-आशिक़ी

मर्हबा वाक़िफ़-ए-राज़-ए-निहान-ए-आशिक़ी

सर-ज़मीन-ए-शेर काबा और तू इस का ख़लील

शाख़-ए-तूबा-ए-सुख़न पर हमनवा-ए-जिब्रईल

जोश-ए-इस्तिग़्ना तिरा तेरे लिए वजह-ए-नशात

शान-ए-ख़ुद्दारी तिरी आईना-दार-ए-एहतियात

बज़्म से गुज़रा कमाल-ए-फ़क़्र दिखलाता हुआ

ताज-ए-शाही पा-ए-इस्ति़ग़ना से ठुकराता हुआ

था दिमाग़-ओ-दिल में सहबा-ए-क़नाअत का सुरूर

थी जवाब-ए-सतवत-ए-शाही तिरी तब-ए-ग़यूर

मौजा-ए-बहर-ए-क़नाअत तेरी अबरू की शिकन

तख्त-ए-शाही पर हसीर-ए-फ़क़्र तेरा ख़ंदा-ज़न

था ये जौहर तेरी फ़ितरी शाइरी के रूतबा-दाँ

इज़्ज़त-ए-फ़न थी तिरी नाज़ुक-मिज़ाजी में निहाँ

मुल्तफ़ित करता तुझे क्या अग़निया का कर्र-ओ-फ़र्र

था तिरी रग रग में दरवेशों की सोहबत का असर

दिल तिरा ज़ख़्मों से बज़्म-ए-आशिक़ी में चूर है

जिस सुख़न को देखिए रिसता हुआ नासूर है

बज़्म-गाह-ए-हुस्न में इक परतव-ए-फ़ैज़-ए-जमाल

सैद-गाह-ए-इश्क़ में है एक सैद-ए-ख़स्ता-हाल

देखना हो गर तुझे देखे तिरे अफ़्कार में

है तिरी तस्वीर तेरे ख़ूँ-चकाँ अशआ'र में

सैर के क़ाबिल है दिल सद-पारा उस नख़चीर का

जिस के हर टुकड़े में हो पैवस्त पैकाँ तीर का

आसमान-ए-शेर पर चमके हैं सय्यारे बहुत

अपनी अपनी रौशनी दिखला गए तारे बहुत

अहद-ए-गुल है और वही रंगीनी-ए-गुलज़ार है

ख़ाक-ए-हिंद अब तक अगर देखो तजल्ली-ज़ार है

और भी हैं माअ'रके में शहसवार-ए-यक्का-ताज़

और भी हैं मय-कदे में साक़ियान-ए-दिल-नवाज़

हैं तो पैमाने वही लेकिन वो मय मिलती नहीं

नग़्मा-संजों में किसी से तेरी लय मिलती नहीं

साहिबान-ए-ज़ौक़ के सीनों में थी जिस की खटक

तैरते हैं दिल में वो सर-तेज़ नश्तर आज तक

कारवान-ए-रफ़्ता को था तेरी यकताई पे नाज़

अस्र-ए-मौजूदा ने भी माना है तेरा इम्तियाज़

हो गए हैं आज तुझ को एक सौ बाईस साल

तो नहीं ज़िंदा है दुनिया में मगर तेरा कमाल

हक़ है हम पर याद कर के तुझ को रोना चाहिए

मातम अपनी ना-शनासी का भी होना चाहिए

ढूँडते हैं क़ब्र का भी अब निशाँ मिलता नहीं

ज़मीं तुझ में हमारा आसमाँ मिलता नहीं

स्रोत :
  • पुस्तक : Auraq-e-Aziz (पृष्ठ 43)
  • रचनाकार : Aziz Lakhnavi
  • प्रकाशन : Nusrat Publisher Aminabad Lucknow

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए