आ जाना
फ़ज़ा में दर्द-आगीं गीत लहराए तो आ जाना
सुकूत-ए-शब में कोई आह थर्राए तो आ जाना
जहाँ का ज़र्रा ज़र्रा यास बरसाए तो आ जाना
दर-ओ-दीवार पर अंदोह छा जाए तो आ जाना
समझ लेना कोई रो रो के तुझ को याद करता है
समझ लेना कोई ग़म का जहाँ आबाद करता है
कोई तक़दीर का मारा हुआ फ़रियाद करता है
तिरी आँखों में अश्क-ए-ग़म उतर आए तो आ जाना
दिलों को गुदगुदाए जब तरन्नुम आबशारों का
घटा बरसात की जब चूम ले मुँह कोहसारों का
मुलाक़ातों के जब दिन हों ज़माना हो बहारों का
बहार-ए-गुल मुलाक़ातों पे उकसाए तो आ जाना
ज़माना मुश्किलों के जाल फैलाए तो फैलाए
क़दम बढ़ते रहें बे-दर्द दुनिया लाख बहकाए
समझते हैं कहीं दीवानगान-ए-इश्क़ समझाए
तिरे होंटों पे मेरा नाम आ जाए तो आ जाना
झड़ी बरसात की जब आग तन मन में लगाती हो
गुलों को बुलबुल-ए-नाशाद हाल-ए-दिल सुनाती हो
कोई बिरहन किसी की याद में आँसू बहाती हो
अगर ऐसे में तेरा दिल धड़क जाए तो आ जाना
- पुस्तक : Yad aaunga (पृष्ठ 162)
- रचनाकार : Rajindr Nath Raj
- प्रकाशन : Print Well Industrial Focal Point, Amritsar (2008)
- संस्करण : 2008
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