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'गाँधी' हो या 'ग़ालिब' हो

साहिर लुधियानवी

'गाँधी' हो या 'ग़ालिब' हो

साहिर लुधियानवी

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    रोचक तथ्य

    (This poem alludes towards that year's worst sectarian riots) (Written at the end of Gandhi shataabdi and Ghalib Sadi)

    'गाँधी' हो या 'ग़ालिब' हो

    ख़त्म हुआ दोनों का जश्न

    आओ उन्हें अब कर दें दफ़्न

    ख़त्म करो तहज़ीब की बात

    बंद करो कल्चर का शोर

    सत्य अहिंसा सब बकवास

    हम भी क़ातिल तुम भी चोर

    ख़त्म हुआ दोनों का जश्न

    आओ उन्हें अब कर दें दफ़्न

    वो बस्ती वो गाँव ही क्या

    जिस में हरीजन हो आज़ाद

    वो क़स्बा वो शहर ही क्या

    जो बने अहमदाबाद

    ख़त्म हुआ दोनों का जश्न

    आओ उन्हें अब कर दें दफ़्न

    'गाँधी' हो या 'ग़ालिब' हो

    दोनों का क्या काम यहाँ

    अब के बरस भी क़त्ल हुई

    एक की शिकस्ता इक की ज़बाँ

    ख़त्म हुआ दोनों का जश्न

    आओ उन्हें अब कर दें दफ़्न

    स्रोत :
    • पुस्तक : Kulliyat-e-Sahir Ludhianvi (पृष्ठ 221)
    • रचनाकार : SAHIR LUDHIANVI
    • प्रकाशन : Farid Book Depot (Pvt.) Ltd

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