जुदा न हम से हो ऐ ख़ुश-जमाल होली में
कि यार फिरते हैं यारों के ताल होली में
हर एक ऐश से हैगा बहाल होली में
बहार और कुछ अब के है साल होली में
मज़ा है सैर है हर सू कमाल होली में
सभों के ऐश को फागुन का ये महीना है
सफ़ेद-ओ-ज़र्द में लेकिन कमाल कीना है
तला का ज़र्द कने सर-बसर ख़ज़ीना है
सफ़ेद पास फ़क़त सीम का दफ़ीना है
हर एक दिल में है रुस्तम-ओ-ज़ाल होली में
कहा सफ़ेद से आख़िर को ज़र्द ने ये पयाम
कि ऐ सफ़ेद तू अब छोड़ दे जहाँ का मक़ाम
मैं आया अब तो मिरा बंद-ओ-बस्त होगा तमाम
तू मुझ से आन के मिल छोड़ अपनी ज़िद का कलाम
वगर्ना खींचेगा तू इंफ़िआल होली में
मिलेगा मुझ से तो मैं तुझ को फिर बढ़ाऊँगा
बना के आप सा पास अपने ले बिठाऊंगा
कहा सफ़ेद ने मैं मुतलक़न न आउँगा
तुझी को बाद कई दिन के मैं भिगाउँगा
तू अपना देखियो क्या होगा हाल होली में
ये सुन के तैश में आ ज़र्द का सिपह-सालार
चढ़ आया फ़ौज को ले कर सफ़ेद पर यक-बार
उधर सफ़ेद भी लड़ने को हो के आया सवार
सफ़-ए-मुक़ाबला दोनों की जब हुईं तय्यार
हुआ करख़्त जवाब-ओ-सवाल होली में
मिला इधर से सफ़ेद और उधर से ज़र्द बहार
घटाएँ रंग-ब-रंग फ़ौजों की झुकीं सरशार
पखालें मश्कें छुटीं रंग की पड़ी पौछार
और चार तरफ़ से पिचकारियों की मारा मारा
उड़ा ज़मीं से ज़माँ तक गुलाल होली में
यहाँ तो दोनों में आपस में हो रही ये जंग
उधर से आया जो इक शोख़ बा-रुख़-ए-गुल-रंग
हज़ारों नाज़नीं माशूक़ और उस के संग
नशे में मस्त खुली ज़ुल्फ़ जोड़े रंग-ब-रंग
कहा कि पूछो तो क्या है ये हाल होली में
कहा किसी ने कि ऐ बादशाह-ए-मह-रू याँ
सफ़ेद-ओ-ज़र्द ये आपस में लड़ रहे हैं यहाँ
ये सुन के आप वो दोनों के आ गया दरमियाँ
इधर से थाँबा उसे और उधर उस को कि हाँ
तुम इस क़दर न करो इख़तिलाल होली में
कहा तुम्हारी ख़ुसूमत का माजरा है क्या
कहा सफ़ेद ने नाहक़ ये ज़र्द है लड़ता
ये सुन के उस ने वहीं अपना इक मँगा जोड़ा
फिर अपने हाथ से जोड़े को छिड़कवाँ रंगवा
कहा कि दोनों रहो शामिल-ए-हाल होली में
फिर अपने तन में जो पहना वो ख़िलअत-ए-रंगीं
सभों को हुक्म किया तुम भी पहनो अब यूँ हीं
हज़ारों लड़कों ने पहने वो जोड़ने फिर वूँहीं
पुकारी ख़ल्क़ कि इंसाफ़ चाहिए यूँहीं
हुआ फिर और ही हुस्न-ओ-जमाल होली में
मियाँ मैं क्या कहूँ फिर इस मज़े की ठहरी बहार
जिधर को आँख उठा कर नज़र करो इक बार
हज़ारों बाग़ रवाँ हैं करोड़ों हैं गुलज़ार
चमन चमन पड़े फिरते हैं सर्व गुल रुख़्सार
अजब बहार के हैं नौनिहाल होली में
जो नहर हुस्न की है मौज मार चलती है
अलम लिए हुए आगे बहार चलती है
अगाड़ी मस्त सफ़-ए-गुल-एज़ार चलती है
पछाड़ी आशिक़ों की सब क़तार चलती है
भूल के दिल में ख़ुशी का ख़याल होली में
गुलाल अबीर से कितने भरे हैं चौपाए
तमाम हाथों में गड़वे भी रंग के लाए
कोई कहे है किसी से कि हम भी लो आए
तो उस से कहता वो हँस कर कि आ मिरे जाए
हँसी ख़ुशी का है क़ाल-ओ-मक़ाल होली में
इसी बहार से गोकुल पूरे में जा पोहँचे
और मंडी नाई की और सय्यद ख़ाँ की मंडी से
सब आलम-गंज में शाह-गंज-ओ-ताज-गंज फिरे
हैं शहर में नहीं और गिर्द शहर के रहते
हुआ हुजूम का बहर कमाल होली में
सभों को ले के कनारी बज़ार में आए
फिर मोती कटरे पलठी के लोग सब धाए
कि पीपल-मंडी-ओ-पन्नी गली के भी आए
जहाँ-तहाँ से ये घिर घिर के लोग सब धाए
कि बे-नवाओं के देखें जमाल होली में
हुई जो सब में शरीफ़-ओ-रज़ील में होली
तो पहले रंग की पिचकारियों की मार हुई
किसी का भर गया जामा किसी की पगड़ी भरी
किसी के मुँह पे लगाई गुलाल की मुट्ठी
तो रफ़्ता रफ़्ता हुई फिर ये चाल होली में
घटाएँ मश्क-ओ-पखालों की झूम कर आईं
सुनहरी बिजलियाँ पिचकारियों की चमकाईं
सबा ने रंग की बौछारें आ के बरसाईं
हवा ने आन के साँवन की झड़ियाँ बनवाईं
लगी बरसने को मश्क-ओ-पखाल होली में
इधर गुलाल का बादल भी छा गया घनघोर
सदा-ए-रा'द हुई हर किसी का ग़ुल और शोर
ये लड़के नाज़नीं बोलें हैं कोकला जूँ मोर
तमाम रंग की बौछार से हैं शोराबोर
अजब है रंग लगी बर्शगाल होली में
लगा के चौक से और चार-सू तलक देखा
कि जागह एक भी तिल धरने की नहीं है ज़रा
तमाम भीड़ से हर तरफ़ बंद है रस्ता
तिस ऊपर रंग का बादल है इस क़दर बरसा
कि हर गली में बहा ढोली-खाल होली में
'नज़ीर' होली तो है हर नगर में अच्छी ख़ूब
व-लेक ख़त्म हुआ आगरे पे ये उस्लूब
कहाँ हैं ऐसे सनम और कहाँ हैं ये महबूब
जिन्हों के देखे से आशिक़ का होवे ताज़ा क़ुलूब
तिरी निराली है याँ चाल-ढाल होली में
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