तराना-ए-वतन
रश्क-ए-फ़िरदौस है तेरा रंगीं चमन
तुझ पे गुल-बाश करते हैं कोह-ओ-दमन
तेरे माथे की रेखा हैं गंग-ओ-जमन
तेरी मिट्टी में ख़्वाबीदा हैं फ़िक्र-ओ-फ़न
फ़ख़्र-ए-यूनान थी तेरी बज़्म-ए-कुहन
मेरे हिंदुस्ताँ मेरे प्यारे वतन
देवताओं की ऋषियों की ये सरज़मीं
ज़र्रा ज़र्रा तिरी ख़ाक का है हसीं
चूमता है क़मर रोज़ तेरी जबीं
तेरे जल्वे न हों किस लिए दिल-नशीं
तेरे ज़र्रे में ख़ुर्शीद की है किरन
मेरे हिंदुस्ताँ मेरे प्यारे वतन
तेरे क़दमों की ज़ीनत है गोदावरी
है हिमाला का पर्बत तिरा संतरी
है हक़ीक़त में कश्मीर जन्नत तिरी
ज़र्रे ज़र्रे में तेरे है इक ज़िंदगी
देश की शान है ताज का बाँकपन
मेरे हिंदुस्ताँ मेरे प्यारे वतन
किस बला की कशिश तेरे ख़ारों में है
औज फ़िरदौस पिन्हाँ बहारों में है
इक नया बाँकपन कोहसारों में है
दिलकशी किस क़दर चाँद तारों में है
है ज़माने से आ'ला तिरी अंजुमन
मेरे हिंदुस्ताँ मेरे प्यारे वतन
मेरा मंदिर है तू मेरा काबा है तू
मेरा मलजा है तू मेरा मावा है तू
मेरी उक़्बा है तू मेरी दुनिया है तू
मेरा है साज़-ए-दिल मेरा नग़्मा है तू
मेरी हर साँस तेरे लिए नग़्मा-ज़न
मेरे हिंदुस्ताँ मेरे प्यारे वतन
सब को उल्फ़त के मरकज़ पे लाऊँगा मैं
एकता का दिया फिर जलाऊँगा मैं
अपने हाथों वतन को सजाऊँगा मैं
प्रेम के गीत हर वक़्त गाऊँगा मैं
इस तरह का बनाऊँगा मैं संगठन
मेरे हिंदुस्ताँ मेरे प्यारे वतन
ख़ून से अपने दूँगा तुझे ज़िंदगी
तेरे फूलों को दूँगा निराली ख़ुशी
ज़र्रे ज़र्रे को बख़़शूँगा मैं रौशनी
सब को ऐसी सुनाऊँगा मैं रागनी
शांति की बहाऊँगा गंग-ओ-जमन
मेरे हिंदुस्ताँ मेरे प्यारे वतन
- पुस्तक : Mizraab (Kulliyat) (पृष्ठ 65)
- रचनाकार : Prof. Ibne Kanwal
- प्रकाशन : Kitabi Duniya, Delhi (2010)
- संस्करण : 2010
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