मैं ने कहा कि शहर के हक़ में दुआ करो
मैं ने कहा कि शहर के हक़ में दुआ करो
उस ने कहा कि बात ग़लत मत कहा करो
मैं ने कहा कि रात से बिजली भी बंद है
उस ने कहा कि हाथ से पंखा झला करो
मैं ने कहा कि शहर में पानी का क़हत है
उस ने कहा कि पेप्सी कोला पिया करो
मैं ने कहा कि कार डकैतों ने छीन ली
उस ने कहा कि अच्छा है पैदल चला करो
मैं ने कहा कि काम है न कोई कारोबार
उस ने कहा कि शाइ'री पर इक्तिफ़ा करो
मैं ने कहा कि सौ की भी गिनती नहीं है याद
उस ने कहा कि रात को तारे गिना करो
मैं ने कहा कि है मुझे कुर्सी की आरज़ू
उस ने कहा कि आयत-ए-कुर्सी पढ़ा करो
मैं ने कहा ग़ज़ल पढ़ी जाती नहीं सहीह
उस ने कहा कि पहले रीहरसल किया करो
मैं ने कहा कि कैसे कही जाती है ग़ज़ल
उस ने कहा कि मेरी ग़ज़ल गा दिया करो
हर बात पर जो कहता रहा मैं बजा बजा
उस ने कहा कि यूँ ही मुसलसल बजा करो
- पुस्तक : Anwar Masood Se Khalid Masood Tak (पृष्ठ 139)
- रचनाकार : Hassan Abbasi
- प्रकाशन : Nastaleeq Matbuaat (2004)
- संस्करण : 2004
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