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वो भी कहता था कि उस ग़म का मुदावा ही नहीं

हसन नईम

वो भी कहता था कि उस ग़म का मुदावा ही नहीं

हसन नईम

MORE BYहसन नईम

    वो भी कहता था कि उस ग़म का मुदावा ही नहीं

    दिल जलाने के अलावा कोई चारा ही नहीं

    ज़ोर-ए-वहशत भी अगर कम हो तो चलना है मुदाम

    सर छपाने के लिए दश्त में साया ही नहीं

    जल के हम राख हुए हैं कि बने हैं कुंदन

    जौहरी बन के किसी शख़्स ने परखा ही नहीं

    गर्द-ए-शोहरत को भी दामन से लिपटने दिया

    कोई एहसान ज़माने का उठाया ही नहीं

    मेरी आँखों में वही शौक़-ए-तमाशा था 'नईम'

    उस ने झुक कर मिरी तस्वीर को देखा ही नहीं

    स्रोत :
    • पुस्तक : Kulliyat-e-Hasan Naim (पृष्ठ 142)
    • रचनाकार : Ahmad Kafeel
    • प्रकाशन : Qaumi Council Baraye Farogh-e-urdu Zaban (2006)
    • संस्करण : 2006

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