जाता है जो घरों को वो रस्ता बदल दिया
जाता है जो घरों को वो रस्ता बदल दिया
आँधी ने मेरे शहर का नक़्शा बदल दिया
पहचान जिन से थी वो हवाले मिटा दिए
उस ने किताब-ए-ज़ात का सफ़्हा बदल दिया
कितना अजीब है वो मुसव्विर कि ग़ौर से
देखे जो ख़द्द-ओ-ख़ाल तो चेहरा बदल दिया
वो खेल था मज़ाक़ था या ख़ौफ़ था कोई
इक चाल चल के उस ने जो मोहरा बदल दिया
करता रहा असीरी के एहसास को शदीद
ज़ंजीर खोल दी कभी पहरा बदल दिया
- पुस्तक : yadain bhi ab khwab hoin (पृष्ठ 77)
- रचनाकार : faatima hasan
- प्रकाशन : B-155 Block -5 gulshan iqbaal karachi (2004)
- संस्करण : 2004
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