'इश्क़ में हम से मशक़्क़त नहीं करनी आई
'इश्क़ में हम से मशक़्क़त नहीं करनी आई
जैसे करते हैं मोहब्बत नहीं करनी आई
आप के हाथ पे हम हाथ भी रखते कैसे
हम से तो अपनी ही बै'अत नहीं करनी आई
गर्दिश-ए-वक़्त में ठोकर नहीं खाई जिस ने
उस क़बीले को बग़ावत नहीं करनी आई
हम तिरे साए में कुछ देर ठहरते कैसे
हम को जब धूप से वहशत नहीं करनी आई
हम से ना-अहलों को इस कारगह-ए-हस्ती में
ज़िंदा रहने की भी सूरत नहीं करनी आई
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