उसी तरह के शब-ओ-रोज़ हैं वही दुनिया
उसी तरह के शब-ओ-रोज़ हैं वही दुनिया
पुरानी ख़ाक पे ता'मीर है नई दुनिया
मैं अपने आप में गुम था मुझे ख़बर न हुई
गुज़र रही थी मुझे रौंदती हुई दुनिया
हर आदमी को ये दुनिया बदल के रख देगी
बदल सका न अगर अब भी आदमी दुनिया
नई हवा को मदद के लिए पुकारती है
ख़ुद अपनी आग में जलती हुई नई दुनिया
मैं जिस हवाले से दुनिया पे ग़ौर करता हूँ
उसी तरह से कभी काश सोचती दुनिया
मैं अपने अस्ल की जानिब रवाँ-दवाँ हूँ और
बुला रही है मुसलसल मुझे मिरी दुनिया
- पुस्तक : Word File Mail By Salim Saleem
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