अज़ीज़ो इस को न घड़ियाल की सदा समझो
अज़ीज़ो इस को न घड़ियाल की सदा समझो
ये उम्र-ए-रफ़्ता की अपनी सदा-ए-पा समझो
बजा कहे जिसे आलम उसे बजा समझो
ज़बान-ए-ख़ल्क़ को नक़्क़ारा-ए-ख़ुदा समझो
न समझो दश्त शिफ़ा-ख़ाना-ए-जुनूँ है ये
जो ख़ाक सी भी पड़े फाँकनी दवा समझो
समझ तू कोर-सवादों को हो जो इल्म न हो
अगर समझ भी न हो कोर-ए-बे-असा समझो
पड़े किताब के क़िस्सों में क्या करो दिल साफ़
सफ़ा हो दिल तो ब-अज़ रौज़तुस-सफ़ा समझो
हँसे जो वो मिरे रोने पे तो सफ़-ए-मिज़्गाँ
न समझो तुम उसे दीवार-ए-क़हक़हा समझो
नफ़स की आमद-ओ-शुद है नमाज़-ए-अहल-ए-हयात
जो ये क़ज़ा हो तो ऐ ग़ाफ़िलो क़ज़ा समझो
तुम्हारी राह में मिलते हैं ख़ाक में लाखों
इस आरज़ू में कि तुम अपना ख़ाक-ए-पा समझो
दुआएँ देते हैं हम दिल से तेग़-ए-क़ातिल को
लब-ए-जराहत-ए-दिल को लब-ए-दुआ समझो
बहा दिया मिरा ख़ूँ उस ने अपने कूचे में
उसी को यारो दियत समझो ख़ूँ-बहा समझो
समझ है और तुम्हारी कहूँ मैं तुम से क्या
तुम अपने दिल में ख़ुदा जाने सुन के क्या समझो
तुम्हें है नाम से क्या काम मिस्ल-ए-आईना
जो रू-ब-रू हो उसे सूरत-आश्ना समझो
ज़हे नसीब कि हंगाम-ए-मश्क़ तीर-ए-सितम
हमारे ढेर को तुम तो वो ख़ाक का समझो
नहीं है कम ज़र-ए-ख़ालिस से ज़र्दी-ए-रुख़्सार
तुम अपने इश्क़ को ऐ 'ज़ौक़' कीमिया समझो
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.