अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले
अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले
दश्त पड़ता है मियाँ इश्क़ में घर से पहले
चल दिए उठ के सू-ए-शहर-ए-वफ़ा कू-ए-हबीब
पूछ लेना था किसी ख़ाक-बसर से पहले
इश्क़ पहले भी किया हिज्र का ग़म भी देखा
इतने तड़पे हैं न घबराए न तरसे पहले
जी बहलता ही नहीं अब कोई साअ'त कोई पल
रात ढलती ही नहीं चार पहर से पहले
हम किसी दर पे न ठिटके न कहीं दस्तक दी
सैकड़ों दर थे मिरी जाँ तिरे दर से पहले
चाँद से आँख मिली जी का उजाला जागा
हम को सौ बार हुई सुब्ह सहर से पहले
- पुस्तक : Is Basti ke ik Kooche Men (पृष्ठ 143)
- रचनाकार : Ibn Insha
- प्रकाशन : Akif Book Depo Daryaganj New Delhi
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.