जो कू-ए-दोस्त को जाऊँ तो पासबाँ के लिए
जो कू-ए-दोस्त को जाऊँ तो पासबाँ के लिए
नहीं है ख़्वाब से बेहतर कुछ अरमुग़ाँ के लिए
तमाम इल्लत-ए-दरमाँदगी है क़िल्लत-ए-शौक़
तपिश हुई पर-ए-पर्वाज़-ए-मुर्ग़-ए-जाँ के लिए
शरीक-ए-बुलबुल-ओ-क़ुमरी हैं वो ज़बूँ-फ़ितरत
जो बे-क़रार रहे सैर-ए-गुलसिताँ के लिए
उमीद है कि निबाहेंगे इम्तिहाँ ले कर
जो इस क़दर मुतक़ाज़ी हैं इम्तिहाँ के लिए
न ख़ाकियों से त'अल्लुक़ न क़ुदसियों से रब्त
न हम ज़मीं के लिए हैं न आसमाँ के लिए
पयाम-ए-दोस्त हुआ क़ासिदों को वज्ह-ए-शरफ़
नसीम-ए-मिस्र से 'इज़्ज़त है कारवाँ के लिए
क़फ़स ज़माना ओ जाँ मुर्ग़ ओ आशियाँ मलकूत
क़फ़स में मुर्ग़ है बेताब आशियाँ के लिए
फ़साने यूँ मोहब्बत के सच हैं पर कुछ कुछ
बढ़ा भी देते हैं हम ज़ेब-ए-दास्ताँ के लिए
हमारी नज़्म में है 'शेफ़्ता' वो कैफ़िय्यत
कि कुछ रही न हक़ीक़त मय-ए-मुग़ाँ के लिए
- पुस्तक : intekhab-e-zarrin (पृष्ठ 135)
- रचनाकार : Khvaja Mohammad Zakariya
- प्रकाशन : Sangeet publication (2009)
- संस्करण : 2009
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