दर्द के पीले गुलाबों की थकन बाक़ी रही
दर्द के पीले गुलाबों की थकन बाक़ी रही
जागती आँखों में ख़्वाबों की थकन बाक़ी रही
पानियों का जिस्म सहलाती रही पुर्वा मगर
टूटते बनते हबाबों की थकन बाक़ी रही
दीद की आसूदगी में कौन कैसे देखता
दरमियाँ कितने हिजाबों की थकन बाक़ी रही
फ़लसफ़े सारे किताबों में उलझ कर रह गए
दर्स-गाहों में निसाबों की थकन बाक़ी रही
बारिशें होती रहें 'नासिर' समुंदर की तरफ़
रेगज़ारों में सराबों की थकन बाक़ी रही
- पुस्तक : Quarterly TASTEER Lahore (पृष्ठ 192)
- रचनाकार : Naseer Ahmed Nasir
- प्रकाशन : Room No.-1,1st Floor, Awan Plaza, Shadman Market, Lahore (Issue No. 7,8 Oct 1998 To Mar.1999)
- संस्करण : Issue No. 7,8 Oct 1998 To Mar.1999
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