फूल वाले दादा जी
किसी गाँव में एक बूढ़ा और बुढ़िया रहा करते थे। उनके पास पूची नाम का एक कुत्ता था। उसको दोनों बहुत प्यार करते थे।
एक दिन जब बूढ़ा अपने खेत में काम कर रहा था, पूची उसे खींच कर एक तरफ़ ले गया और भौंक-भौंक कर पंजों से ज़मीन कुरेदने लगा। बूढ़ा जितना भी उसे हटाने की कोशिश करता पूची उतने ही ज़ोर से भौं-भौं करते हुए फिर ज़मीन कुरेदने लगता। आख़िर बूढ़े ने फावड़ा उठा कर उस जगह को खोदना शुरू किया। खोदने पर वहाँ से हीरे और मोतियों से भरा हुआ घड़ा निकला जिसे पाकर बूढ़ा बहुत ख़ुश हुआ और सारा ख़ज़ाना लेकर अपने घर आ गया।
बूढ़े का एक पड़ोसी था। बेहद लालची। उसने बूढ़े को ख़ज़ाना लाते हुए देखा तो पूछ लिया। बूढ़ा था सीधा-साधा। उसने पड़ोसी को ख़ज़ाना मिलने का सारा वाक़िया कह सुनाया। जलन की वजह से पड़ोसी की नींद उड़ गई।
अगले दिन उसने मीठी-मीठी बातें कर के बूढ़े से एक दिन के लिए पूची को माँग लिया। उसे लेकर वो सीधे अपने खेत में गया और बार-बार कुत्ते को तंग करने लगा कि वो उसे भी ख़ज़ाना दिखाए। आख़िर पूची ने एक जगह रुक कर पंजों से ज़मीन कुरेदनी शुरू ही की थी कि पड़ोसी ने झट फावड़े से वो जगह खोद डाली। खोदने पर हीरे-मोतियों के बजाय उसे मिला कूड़ा और गंदा कचड़ा। पड़ोसी ने झल्लाहट में आव देखा न ताव और पूची को मार कर फेंक दिया। जब पूची के मालिक बूढ़े को मालूम हुआ तो वो बहुत दुखी हुआ। उसने पूची की लाश को गाड़ कर वहाँ पर एक पेड़ उगा दिया। हैरानी की बात कि दो दिन में ही वो बढ़ कर पूरा पेड़ बन गया। बूढ़े ने उस पेड़ की लकड़ी से ओखली बनाई। नए साल के पकवान बनाने के लिए उसमें धान कूटने लगा तो ओखली में पड़ा धान सोने और चाँदी के सिक्कों में बदलने लगा। पड़ोसी को भी मालूम हुआ तो वो ओखली उधार माँग कर ले गया। जब उसने ओखली में धान कूटे तो धान गंदगी और कूड़े में बदल गया। पड़ोसी ने ग़ुस्से में ओखली को आग में जला डाला। बूढ़े ने दुखे हुए दिल से जली हुई ओखली की राख इकट्ठा की और उसे अपने आँगन में छिड़क दिया। वो राख जहाँ-जहाँ पड़ी वहाँ सूखी घास हरी हो गई और सूखे हुए पेड़ों की डालियाँ फूलों से लद गईं।
उसी वक़्त वहाँ से बादशाह की सवारी निकल रही थी। बादशाह ने फूलों से लदे पेड़ों को देखा। उसका दिल ख़ुश हो गया और उसने बूढ़े को अशर्फ़ियों की थैली इनाम में दी।
हासिद पड़ोसी ने ये देखा तो बची हुई राख उठा ली और बादशाह के रास्ते में जा कर एक सूखे पेड़ पर राख डाली। पेड़ वैसा ही ठूँट बना रहा पर राख उड़ कर बादशाह की आँखों में जा पड़ी। बादशाह के सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया और उसे ख़ूब पीटा। बूढ़ा आस पड़ोस में ‘फूल वाले दादा जी’ के नाम से मशहूर हो गया।
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